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________________ ४२३ -६२. २३.५] महाकवि पुष्पदन्त विरचित २२ सहि भत्तपाणगिद्विारहित इच्छिवि णिच्छियमत्तासहिउ । पासिवि वर्णगिरिधरकंदर फणिविच्छियघरि तहकोइरइ । पिण्णासह सत्त वि सो भयई मयचिंध नहु अट् वि गयई । दिलु बभचेह णवविधरित दहविहु जिणधम्मु परिप्फुरिउ । वहभेत विकालु वि लक्खियड एयारह अंगई सिक्खियउ । बारह अणुपेक्खर चिंतव तेरह चारितई थिरु थवइ । पदहगुणठाणई अम्भसइ पण्णारविह पमाय पुसइ । परिभाविवि सोलहकारणई। तित्थयरत्तणहकारणई। घत्ता-सहुं बंधवेण अर्णिदहु गणहतिलयगिरिंदहु॥ दूसहणिवाणिहिट तहिं अणसणिण परिदिउ ।।२२।। २३ हियसलाई मुणिमग्गोण णिव जइपुंगम घणरहरायसुय सम्वत्यसिद्धिसुरेहरि धवल तेत्तीसससुरजीवियपवर तइ बरिससहासई लेति खणु पाउंगगमरणु मासंतु किउ । मेय बेणि वि ते अहमिंद हुय । करमेत्तदेह वरमुहकमल। सेत्तिय जि पक्ख णीसासधर । आहार वि चिंतिध सुहेमु अणु । wom यहां भोजन और पानकी इच्छासे रहित, निश्चित मात्रासे युक्त ( भोजन ) चाहकर सो और बिच्छुओंके घर तथा वृक्ष कोटरवाली वनगिरिकी गुफाओंमें प्रवेश कर, वह भी सात भयोंका नाश करते हैं, मानके आठ चिह्न भी उनसे चले गये । उन्होंने नौ प्रकारके दृढ़ ब्रह्मचर्यका पालन किया। इस प्रकारका धर्म उनमें स्फुरित हो उठा । दस प्रकारके मुनि-आचारको भी उन्होंने जान लिया। उन्होंने ग्यारह अंगोंको सीख लिया। उन्होंने बारह अनुप्रेक्षाओंका चिन्तन किया। सेरह प्रकारके चारित्रोंको स्थापना करता है। चौवह गुणस्थानोंका अभ्यास करता है। पन्द्रह प्रकारके प्रमादोंका नाश करता है। तीर्थकरत्वका बन्ध करनेवाली सोलहकारण भावनाओंका विचार कर पत्ता- अपने भाईके साथ, यह अनिन्द्य नभस्तिलक पर्वतके लिए गये। असह्य निष्ठामें निष्ठ वह यहाँ अनशनमें स्थित हो गये ॥२२॥ अपने हृदयको मुनिमार्गमें लगाकर एक माहका प्रायोपगमन उपवास किया। दोनों यतिश्रेष्ठ घनरथ और उसका पुत्र मृत्युको प्राप्त हुए और दोनों सर्वार्थसिद्धि के विमानमें अहमेन्द्र उत्पन्न हुए। दोनों गोरे, एक हाय शरीरवाले, श्रेष्ठ मुखकमल और तैंतीस सागर प्रमाण आयुसे युक्त उत्तम जीवनवाले थे। वे उतने हो पोंमें श्वास लेते थे। तैंतीस हजार वर्षों में एक क्षण में २२. १. AP मस्तु पाणु । २. A धणे गिरि । ३. A विच्छियतगिरि । ४. AP कोहरह। ५. AF सो ____सत वि भयहं । ६. AP अगुवेक्खः । ७. P तेरह धि चरित्तई बिरु घरह ।। २३. १, A पासवगमण । २. AP पुस । ३. A हरयल | ४. AP जहि । ५. A मुहम् ।
SR No.090275
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages522
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size15 MB
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