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-१२. २०.४]
महाकवि पुष्पदन्त विरचित
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तं णिसुणियि देवि सुरूविणिय अपोक दुक अइरूपिणिय। जहिं अच्छइ राउ समाहिरउ वहिं ताहिं तासु दाविर समउ । दोहिं मि गाढउ आलिंगियर वोहि मि मुहचुंबणु मग्गियउ । दोहिं मि सुमहरु संभासियत दोहिं मि आहरणहिं भूसियउ । णीवीणिबंधु आमेलियउ दोहि मि थणकलसहि पेल्लियउ। दोहि मि सवियार पलोइयाउ दोहिं मि उरुडप्परि ढोइयउ । अचलत्ते अहिणवमंदरह जहिया हित्तउ सुंदरहु । तं बेणि मि देपिणु गया वंदारयपरिणि अविरयउ । अण्णहि दिणि सुर चवंचि जुबह । परलोइ अस्थि किं स्ववा। ता भासइ ईसाणाहिवइ पियमिचाह केरी रूवगइ। घत्ता-ता देवय मणि कंपद पुरहयउ किं जपइ ।। सर्व मण्णा माणवि आगय रइ रइसेण वि ।।१९।।
२० असणीहिं सुरकामिणिहिं जोइवि अइरादयगामिणिहिं ।। अभंगिउ अंगु मनोहर
उघाडउं तुंगपयोहर वेणि वि पुणु दारि परिट्ठियउ देवि दसणउकंठियद। अक्खिउ कण्णइ कट्ठियहरद अमछतिनियउदारतर :
यह सुनकर एक सुरूपिणी और दूसरी अतिरूपिणी देवियां वहां पहुंचों कि जहां राजा समाधिमें लोन था। वहां उन्होंने उसका अवसर प्रदर्शित किया। दोनोंने एक दूसरेका प्रगाढ़ रूपसे आलिंगन किया। दोनोंने एक दूसरेका मुख-चुम्बन मांगा। दोनोंने सुमधुर सम्भाषण किया। दोनोंने एक दूसरेको आभरणोंसे आभूषित किया। नीवीबन्ध खोल दिया। दोनोंने एक दूसरेको स्तनकलशोंसे प्रेरित किया। दोनोंने विकारपूर्वक देखा। दोनोंने उरके ऊपर जर रखा। अचलत्वमें नये मन्दराचलके समान उस सुन्दरके हृदयका अपहरण नहीं किया जा सका तो व्रतहीन वे दोनों देवांगनाएं वन्दना करके चली गयो । दूसरे दिन देव कहते हैं कि क्या मनुष्यलोकमें रूपवती युवती है ? इसपर ईशानेन्द्रने प्रियमित्राको रूपगतिका वर्णन किया।
पत्ता-तब देवी मन में कांप उठती है, इन्द्र क्या कहता है मनुष्यणोके रूपको मानता है। रति और रतिसेन देवियाँ आयीं ॥१९॥
ऐरावत गजके समान चलनेवाली उन देवबालाओंने अदृष्ट होकर उसके तेलसे मदित सुन्दर पारीर और खुले हुए ऊंचे स्तन देखकर फिर वे देवीको देखनेकी उत्कण्ठासे द्वारपर गयीं। यष्टि धारण करनेवाली कन्याने कहा-द्वारके पास स्त्रियाँ हैं, क्या विद्यापरियां हैं, या अप्सराएं?
१९. १. A समहरू । २. AP पुरुहू । २०. १, A सदसणीहि । २. P देविहिं । ३. AP तृपत्र ।