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________________ -६२. २. १२ ] महाकवि पुष्पदन्त विरचित पत्ता-दिल्लइ सालंकारह ताई सहस्सु दोणारई ।। एह दत्त णिसुणेपिणु अवर वि पक्खि लएप्पिणु ॥ १॥ १५ कुलिंसाणणु कुकडु कंचणिय अक्खइ सुमइहि घरकामिणिय । गाडेण वि जिप्पड़ पहुए वि जुड़े तहु संकइ गणि रवि। ता हरिसे वाइय जयवाह खंजय णचंति लडमडह। तहिं आया धणरह मेहरह दढरह वरसेण णदि सुमैह । पियमित्तसुमइकरयलपुसिय चिरजम्मणिबद्धवइरिवसिय । जुझंति पक्खि ते पबल बल चंचेलचंचुचरणारेचल। उल्ललणवलणपरिथत्तहिं पेहुणसिरसिहरवियत्तणहिं । रोसुद्धयकंधर केसरय जं के विण ओसरंति सरय । तंताएं पुच्छिल मेहरा संबोहहुं भन्नजीवणिवहु । किं तंबचूल जुझंति सुय भणु अवहिवंत सग्गग्गचुय । धत्ता-कहइ कुमारु सुहावह एत्थु दीवि अइरावद ॥ सपडजीवि तिहार र पारावर ॥२॥ पत्ता-उसे अलंकारों सहित एक हजार दोनारें दी जायेंगी।" यह बात सुनकर दुसरी भी ( सुमतिको दासी कांचना ) अपना पक्षो ( मुर्गा ) ॥१॥ वज्रतुण्ड लेकर सुमति की गृहदासी बोली कि यह गाड़के द्वारा भी नहीं जीता जा सकता। उड़ते हुए इससे आकाश में सूर्य शंकित हो उठता है । सब हर्षसे विजयके नगाड़े बना दिये गये, सुन्दर वामन कुब्जक नाचने लगे। वहाँपर घनरथ, मेघरथ, दुहरथ, वरसेन और तेजस्वी नन्दिवर्धन आये । प्रियमित्रा और सुमतिके हाथोंसे पोसे गये तथा पूर्वजन्ममें बांधे गये वैरके वशीभूत होकर प्रबल बलवाले तथा अपनी वक्र चोंचों और पैरोंसे चंचल वे दोनों मुर्गे उछलना, मुड़ना, घूमना तथा पूंछसे सिरके शेखरको धुमाना आदिसे युद्ध करने लगे। क्रोधसे कांपते हुए कन्धों और केशरक ( सिरके बाल ) याले और चिल्लाते हुए जब वे मुर्गे नहीं हटे तो पिताने मेघरथसे भव्यजीवोंके सम्बोधनके लिए पूछा, "ह पुत्र, ये मुर्गे क्यों लड़ते हैं। हे स्वर्गसे च्युत अवविज्ञानवाले तुम बताओ।" पत्ता-कुमार बताता है-यहाँ इस जम्बूद्वीपमें सुखास्पद ऐरावत क्षेत्र है। उसके रलपुर नगरमें गाड़ीसे अपनी आजीविका चलानेवाले दो लालचो भाई रहते थे ||२|| ४. A सहासु । ५. AP अबरु । २. १. P परि कामिणिय । २. AF कुज्जय। ३. A गंविपमुह । ४. AP बदररसिम। ५. A चरणा चवल । ६, AP केम विणोसरति ।
SR No.090275
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages522
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size15 MB
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