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________________ ५ १० संधि ६२ पढnata fres इ तहिं घर पहु सयमहणमिउ हु देवि मोहर तुंगथणि बाहु जो अहमिंदुहुउ aणुतेओहामियभारह सहसा अमर मणोरमह चित दणु संगिड भायर बिहिं मि कमभाणियल एकहि दिवुड्डु त अवरेकाहिं दिणि सुसेण गणिय सामु कुकुडुलेवि गय पपिक्खि पक्खक्खहिं द्दण्इ सुरगिरिपुःषविदेइ || परपुंडरिंगिणपुरि || ध्रुवकं ॥ १ तिहुयणसिरिरमणी पापि । गलकंदललंबिया र मणि । संभू गभि सो ताहि सुत | हकारिताएं मेहरहु | वजहि आयउ सुहसमइ । सो सजणेहिं ददरहु भणिज । पियमित सुमइ वरणियत । ture रसेणु वराणणच । पियमित्तद्दि घर कोडावणिय | भासह वेविहि पण मंति पय । किंवा एहु जो रणि जिणइ । सन्धि ६२ १ जम्बूद्वीप में जहां मेघ स्थिर हैं ऐसे सुमेरुपवत के पूर्वविदेहमें पुष्कलवती देशके पुण्डरीकणो नगरवर में धनरथ राजा था जो इन्द्रके द्वारा प्रणम्य और त्रिभुवनकी लक्ष्मीरूपी रमणीका प्राणप्रिय था। उसकी उन्नत स्तनोंवाली तथा जिसके गले में मणियों का हार लटकता है ऐसी मनोहरा नामकी देवी थी। जो वज्रायुध अहमेन्द्र हुआ था, वह उसके गर्भ से पुत्र उत्पन्न हुआ । अपने शरीर के तेजसे सूर्यरथको तिरस्कृत करनेवाले उसे पिताने मेघरथके नामसे पुकारा। मैवेयक विमान से शुभ समय में मनोरमा के गर्भ में आया। उस नृपकान्ताने पुत्रको जन्म दिया। सज्जनोंके द्वारा उसे दृढ़रथ कहा गया । उन दोनों भाइयोंकी कमसे कही गयीं प्रियमित्रा और सुमति रानियाँ थीं। एकसे नन्दिवर्धन पुत्र हुआ। दूसरोमे सुन्दर मुखवाला वरषेण । एक और दिन प्रियमित्राकी दासी सुषेणा कुतुहलसे भरी हुई घनतुण्ड मुर्गा लेकर देवीके घर गयो और पैरोंमें प्रणाम कर बोली, "जो प्रतिपक्ष अपने पंखों और नखोंसे इसे आहत करता है और युद्धमें इस मुर्गेकी जीतता है - १. १.AP थिए । २. K प्राणपि ३. APकिंताणंदणु ।
SR No.090275
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages522
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size15 MB
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