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महाकवि पुष्पदन्त विरचित
जिह सोहि अवरु वि अजियसेणु रयणत्तयजलघुय कम्मरेणु । थुसर्या पसंसिवि वरगिरेण देवि वि संसार चित्त काणदणदिजं दाणि
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पत्ता - खगमद्दिद्दरदाद्दिणपतियहि सिवमंदिर घणवाणहू ॥ विमलादेविहि संभूय सुय कणयमाल सँपसाहणहु ||२१||
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-६१. २२. ९ ]
संगरभर मारियखत्तियासु गुणमणिकुलहरासु वसुसारयणयरि समुहसेण बोहि मिस गड गहणंतरालु विमलपणा त्थु साहु निसुणेवि तहु पावज्ज लइय नारिहि में चल भइ जणियसंति सिद्धाय काओसग्गु देवि अवियाणियसमचित्तें जडेण
बेfor वि वंदिय पणमिय सिरेण । जिम्मि कि केम चित्तु सररज्जि पचबूढमाणि ।
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दिण्णी वसुहाविणत्तियासु । सोवण्णसंतिणामहु वरासु । राहु जयसेण वसंतसेणं । घोळंतणीलदल वे लिजालु । अबलोइट णाणजलोहवाहु | सरणिहिं तेण विमुकादश्य । आसंघिय विमलमs त्ति खंति । विणि वि थियाई मणि जोड लेवि । त्रिज्जाहरेण बरुम्भडेण ।
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गये हैं। जिस प्रकार वह उसी प्रकार दूसरा अजितसेन भी रत्नत्रयरूपी जलसे कर्मरजको धो चुका है। उसने सैकड़ों स्तुतियों और उत्तम वाणी तथा नम्रांसरसे दोनों की वन्दना की। उसने विचार किया कि संसार विचित्र है, जिनधर्म में चित्तको क्यों न किया जाये ? जिसमें कन्यापुत्रों और दीनोंको दान दिया जाता है ऐसे चक्रवर्ती राज्यके बढ़नेपर
पत्ता - विजयार्थं पर्वतको दक्षिण श्रेणीके शिवमन्दिर नगर में सैन्ययुक्त मेघवाहन और मलादेवीके कनकमाला नामकी पुत्री हुई ॥२१॥
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जिसने संग्राम समूहमें क्षत्रियों को मारा है, जिसने गुणरूपी मणियोंसे कुलगुद्दोंको आलोकित किया है, ऐसे राजाके नाती कनकशान्ति नामक वरको कन्या दी गयी । वसुसार नगर (बस्वोकसार ) के समुद्र राजाकी जयसेना और वसन्तसेना स्त्रियां थीं वह उन दोनोंके साथ गहन वनके भीतर गया कि जहाँ हरे-हरे पत्तोंवाला लताजाल आन्दोलित हो रहा था। वहाँ उसने ज्ञानरूपी जलसमूहको धारण करनेवाले विमलप्रभ नामक मुनिको देखा। उनसे तर सुनकर उसने अपनी गृहिणियोंके साथ, जिसमें पत्नी का त्याग किया जाता है ऐसी दीक्षा ग्रहण कर ली । स्त्रियोंने मी अविचल मति एवं शान्ति देनेवाली विमलमति नामकी अधिकाकी शरण ग्रहण की। सिद्ध-शिलासलपर कायोत्सर्ग करते हुए वे तीनों मनमें योग धारण कर स्थित हो गये। जो
४. AP बैणि वि पर्णादवि बंदिवि सिरेण । ५. A देवें; P देखिए । ६. AP वाहिणसेवियहि । ७. AP सुसा
२. १. A adds after this: तह शुभ उप्पणी वरभुएण, सा पुणु परिणिय पहुसुयसुएन । २. AP निच्चलमा ।