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-६१. २०.४] महाकषि पुष्पदन्त विरचित
ओइच्छइ तुह पयणय विणीय संतिमइ णाम महुँ तणिय धोय । विजासाहणि थियवणयरासु उवगय मुणिसायरगिरिवरासु। किर साह इच्छियसिद्धि जाव गुरुविग्धु पउंजिट एण नाव । सं अवगणिवि मृगलोयणाइ सिद्धी देषय जाणिवि अणाइ । आरूसिवि कढिज मंडलग्गु एह वि लंधिय गृहमंडलग्गु । आवेप्पिणु सुजल पइट गेहि हउँ पुन्ज लेवि खे भमियमेहि। आगच्छामे का माहेररित्ति ता पेच्छिवि णहि धावति पुत्ति । इह आयल अक्खिल तुज्झु राय पेक्खहि परिरक्वहिणायछाय । गंभीरघोरवइराण
तं सुणिवि वुस्तु वजाहेण । पत्ता-ह दीपरावयविझरि विझसेणु णामें पिवई ।।
णामेण सुलक्खण मिगेणथण तहु रायाणी हंसगइ॥१||
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२० तहुँ गंदणु णामें लिगकेट ___णं घिउ पररूवं मयरके! तेत्थु जि पणिवर णामें सुमित्तु सिरिदत्त कंत तणुरुह सुदत्त । पीयंकरिणामें तासु भन्न
साहित्ती णिवतणएं मणोज । महिलाविरहेण मुर्णिदवासि रिसि हुन सुदत्तु सुखयहु पासि । सुकान्ता मेरो कान्ता है। बहुतसे तन्त्र-मन्त्रोंको विधि और बुद्धिसे युक्त शान्तिमतो नामको मेरी कन्या जो आपके चरणों में विनीत है, विद्या सिद्ध करनेके लिए जहाँ वनपर स्थित हैं ऐसे मुनिसागर नामक पर्वतपर गयी हुई थी। जबतक यह इच्छित सिद्धिको सिद्ध करती तबतक इसने भारी विघ्न किया। उसकी उपेक्षा करके मगनयनीने विद्या सिद्ध कर ली। इसने यह जानकर और क्रुद्ध होकर अपनी तलवार निकाल ली। यह भी आकाशमण्डलका अग्रभाग लांघकर और आकर तुम्हारी शरणमें प्रवेश कर गया। में पूजा लेकर, जिसमें बादल घूम रहे हैं, ऐसे आकाश जबतक पर्वतकी भूमिपर आता है, तबतक आकाशमें पुत्रीको दौड़ते हुए देखता हूँ। में यहां आया हूँ और आपसे कहा है । आप इसे देखें और न्यायके प्रभावको रक्षा करें। गम्भीर घोर शत्रुषोंको ललकारनेवाले वज्रायुधने यह सुनकर कहा
पत्ता-इस जम्बूद्वीपके ऐरावत क्षेत्रमें विव्यनगर है। उसमें विन्ध्यसेन राजा है । उसकी सुलक्षणा नामकी मृगनयनी तथा हंसको चालवाली रानी है ॥१२॥
२० उसका नलिनकेतु नामका पुत्र है, जो मानो मनुष्य के रूपमें कामदेव हो। वहींपर सुमित्र नामका बनिया था, उसकी श्रीदत्ता परनी थी और सुदत्त पुत्र था। उसकी प्रोतकरी नामकी मार्या थी । उस सुन्दरीका राजाके पुत्रने अपहरण कर लिया। पत्नीके विरहमें वह जिसमें मुनीन्द्रोंका
२. A सुक्क । ३. P मिग । ४. AP हि मंडल । ५. Pणायणाय । ६, AP णिसुपिति ।
७. यह । ८. A सलक्षण । ९. K मूग । २०.१. AP पीइंफरि । २. A नृवसथएं ।