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महापुराण
वासीहरु पल्लव णिग्गट बड सि णरलोहिउ घोट्ट चरचैरंत तणु धम्म फाड रायणिमाखचरणजुयला चरुयसय मणुएं संजुतउ जयतुं तं आ ण णिरिक्खहि कुंभकारकडु पुरब घुटु
पवि महाणस सत्यणिओएं सूसिव व मुहकमलु णिरिक्खि उ माणुसमासहु रा पइद्धउ साहियरक्खस विज्जाणियरच तहि अवसर पुलिड णिसियरु कुलिसकद्विणण बियारह वाहिवि वाहिनि पुणु अबहेरिड अप्पयथियाई तमवंतई घचा-- - पंडुर मंदिरपड सलु लोड थड पसिषि
[ ६०. १०.६
ढो पहुहि रसायणपराएं 'चारु चार पभणते भक्ति । अवरहिं दिणि सूरु जि खद्धउ | रवरिंदु हूयउ स्यणिवरव । तहु सरीरि संठित भीसणयरु । णासंदई जंतई पश्चारइ ।
भुक्ख मारिउ ।
एमहिं कहिं महुँ जाहु जियंतई । ता पट्टणि कारय ॥ तहु रयणियरहु णासिषि ||१०||
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विरक्खजणपच्छइ लग्गड | डेड त्ति हडई दलबट्टश् । गाई त्रिर्द्धणाई अफलोडइ । तो वृन पयाड भयभगाइ । दिहि दियहि लह तुम्छु जिउसव । तयहुं हुं पुणु सव्व भक्खहि । णिवमेव दिज इट्टएं ।
उनके लिए प्रेत-मांस भी मंगल होता है । पाकशास्त्र के विधान के अनुसार पकाकर रसोइयेने उसे दिया । राजाने सन्तुष्ट होकर उसका मुखकमल देखा, और 'बहुत सुन्दर, बहुत सुन्दर' कहकर उसको खा लिया। उसका प्रेम मांसभक्षण में बढ़ गया और दूसरे दिन उसने रसोइयेको खा लिया । जिसने राक्षस-विद्या-समूह सिद्ध कर लिया है ऐसा वह नरवर राक्षस हो गया। उस अवसर पर पहलेका निशाचर ( भैसेका जीव ) उसके शरीर में प्रविष्ट हो गया। वह अपने कुलिशके समान कठोर नखोंसे विदीर्ण करता और भागते हुए लोगोंको उलाहना देता। बुला-बुलाकर उनका तिरस्कार करता । भला मैं बहुत समय से भूख से पीड़ित हूँ, स्वार्थी और अज्ञान से भरे हुए तुम लोग मुझसे ( बचकर ) जीते जी कहाँ जाते हो?"
पत्ता - जो सफेद घरों से प्रगट है, ऐसे उस फारकट नगर में उस राक्षस राजासे भागकर प्रवेश कर रहने लगे || १० ॥
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तब वह नृपराक्षस सिंहपुर से निकला और लोगों के पीछे लग गया । घड़-घड़ कर लोगोंका खून पोता और कड़कड़ करके हड्डियोंको चूर-चूर कर देता । शरीरके चमड़ेको चर चर करके फाड़ देता और उसके जोड़ों को तोड़ डालता। राजाके दोनों पैरोंपर गिरते हुए भयभीत प्रजाने कहा - "शुभ प्रतिदिन मनुष्य सहित एक गाड़ी भात निश्चित रूपसे लो, और जब तुम उसे आया हुआ न देखो, तब तुम सब लोगों को खा डालना।" इस प्रकार वह नगर कुम्भकारकट घोषित
३. AP रूसिवि । ४. AP स्यादवि ।
११.१ AP षडति । २. AP कयसि । ३ AP बरयरति । ४. AP णिबंधणारं । ५. AP आयतं ।