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दुपसरणिवारओ मोहमहारिउमाओ
पंचमचकहरो रईसो सोहम परमेट्टि पसण्णो तत्तसमुज्जलकं चणवण्णो केवलमामयमेो भूणभारविवचिकपण जोकराव लितो भन्तजगत्तिहरो भयवंतो फुजियकोमलपंकयवन्तो संतिय भुवणुत्तमसत्तो
संधि ६०
बत्ता - सी भवसायरतारओ किश्त पयास मि
जो दीणे किवारओ ॥ जो सासयसित्रमाओ ॥ध्रुव की
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जेण णिओ समणं ण रईसो । सुत्तणिसे हिय पेसिपसण्णो । जायणि उत्तचविष्णो । समूह हो । गणचियखेरकण्णो । संतसहावी किंतो । जो गिरिधीरो णां भयवंत। कुतित्थ सुतिस्थपचन्तो । यो परिरक्खियसन्ती । विवि संतिभंडारओ ॥ वासु जि चरित्रं समासमि ||१||
सन्धि ६०
जो पाप के प्रसारका निवारण करनेवाले और दोनों में कृपारत हैं। जो मोहरूपी महाशत्रुका नाश करनेवाले और शाश्वत शिवलक्ष्मीमें रत हैं ।
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जो पाँचवें चक्रवर्ती हैं, मनुष्योंके ईश जिन्होंने कामको अपने मनके पास नहीं फटकने दिया, जो प्रसन्न सोलहवें तीर्थंकर हैं। जिन्होंने अपने सूत्रों (सिद्धान्तों ) से मदिरा और मांसका निषेध किया है, जो तत्त्व से समुज्ज्वल और स्वर्ण वर्णवाले हैं, जिन्होंने चारों वर्णोंको न्यायमें नियुक्त किया है, जो केवलज्ञानरूपी महामेचजलवाले हैं, जिनके द्वारा भव्यजनोंकी मेधा (बुद्धि) का निरूपण किया गया है, जिनके कान भूषणोंके भारसे विवजित हैं, जिनके प्रांगण में विद्याधरकन्याएँ नृत्य करती हैं, जो पूर्ण चन्द्रकी किरणावली के समान सुन्दर हैं, जो भक्तजनों की पीड़ा दूर करनेवाले हैं, जो ज्ञानवान् हैं, जो पर्वतकी तरह धीर हैं, जो भययुक्त नहीं हैं; जिनका मूख खिले हुए कोमल कमलके समान है, जो कुतीर्थों को ध्वस्त करनेवाले और सुतीर्थों का प्रवर्तन करनेवाले हैं, जो शान्ति करनेवाले और भुवनमें सर्वश्रेष्ठ है, जो दयामें वृद्ध और प्राणियोंकी रक्षा करनेवाले हैं।
घत्ता - - ऐसे भवसमुद्रसे तारनेवाले शान्ति भट्टारकको प्रणाम कर, अपने सुकवित्वका प्रकाशन करता हूँ और उनके चरितका संक्षेपमें कथन करता हूँ ||१||
१. १. A छ ।