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________________ -५९. १३. २३ ] महाकवि पुष्पदन्त विरचित को पत्थु सामि कहु वणिय भूमि । कुलभूसणम्मि सिरिसासणन्मि। भणु लिहिय कासु बलु जासु तासु । इय बजरंत अमरिसफुरंत। आउहई लेवि अभिट्ट चे वि। ते चरणरिंद पडिहरिविंद। कयरोलिया दाढालिया। पिंगच्छियाउ बीइच्छयाउ। फणिकंकणाउ लबियथणा। उक्केसियाउ रिपेसियाउ। गरूपिण सुरजागिणी। कण्हे हयाउ णासिवि गया। पणिक्षिण करिठरणिवेण। चालिदि गुरुकु उम्मुकु चक्कु । आरालिफुरि कण्हेण धरि । दाहिणकरेण णं गहवरेण । कसणेण तंबु वभाणुबिंबु । पुणु भणि पिसुणु महुकील णिसुणु । धत्ता-रे रे रिकुंजर दढदोहरकर सीरिहि सरणु पदुक्कहि ।। एवहिं असिजीहहु महुं परसीइङ कमि पडियज कहिं घुक्काहि ।।१३।। उस दामोदरने कहा- "यहां कौन स्वामी है, और किसकी भूमि है ? बताओ कुलभूषण किसके श्री शासनमें धरती लिखी हुई है ? जिसके पास बल है, धरती उसको। ( जिसको लाठी उसकी भैंस)," यह कहते हुए तथा अमर्षसे विस्फुरित होते हुए नारायण और प्रतिनारायण वे दोनों श्रेष्ठ नर हथियार लेकर लड़ने लगे । जिसने भयंकर शब्द किया है, जो दाढ़ोंसे युक्त है, जो पीली और भयंकर अखिोंवाली, नागों, वलय पहने हुए लम्बे स्तनोंवाली तथा उठे हुए बालोंवाली। शत्रुके द्वारा प्रेषित, ऐसी वह बहुरूपिणी देवविद्या कामिनी, नारायणके द्वारा आहत होकर भाग गयी। तब शत्रुके लिए निर्दय, गजपुरनरेश मधुकोड़ने चलाकर भारी चक्र छोड़ा। आराओंसे स्फुरित उस चक्रको कृष्णने अपने दायें हाथसे इस प्रकार पकड़ लिया मानो काले ग्रहबरने (राहुने ) लाल-लाल नव-भानुबिम्ब पकड़ लिया हो ! नारायणने कहा--"हे दुष्ट मधुकोड, सुन। पत्ता-हे दृढ़कर शत्रुगज, तुम बलभद्रको शरणमें आ जाओ। इस समय तलवार जिसको जीभ है, ऐसे मुझ जैसे नरसिंह के चरणोंमें पड़े हुए तुम फैसे बच सकते हो" ३१३|| २.A अमरिसु । ३. AP बीहच्छियाउ । ४. A उनकोसियाठ 1 ५. AP परि मुक्कु । ६. P वर स्रोहह । ७. A कमपडिय। A warwwwmnnnnnnnn.
SR No.090275
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages522
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size15 MB
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