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महापुराण
[५८.८.७जोण्हालउ णिहिलकलाख लेंतु मुहदसणु कुवलयदिहि करंतु। कामग्गितापवित्थर इरंतु अफलंकु अखंड पसणेकंतु | घत्ता-जिणु परिसई कयजणहरिसह माणियइच्छियसोक्खई ।।
जेहिं कुर्वरतणि थिन सिसुकीलणि तहि सत्तद्ध जि लक्खईदा
पुणु नहु का पची मयणताउ सिरि मुच्छिय चमरहिं दिण्णु पाउ | सिंचिय अहिसेयघडंबुपहि सचेयण कय मइवरणेहि। जट्ठिय लहु सत्संगई धुणंति अरि सुहि मार्शत्थु वि मणि मुणति । णियपरियणणिवसणु संघरंति मिलियह मैडलियहं मणु हरति । अवलोइय णाहहु खेर्ड देति अच्छचलि विचलि लीलाइ वसति । पुजि सूइड इंदाइएहिं
सीसेण पमंसिउ दाइरहिं । मुंअंतह संपयसुहसयाई
पणदहसमाहं लक्खई गयाई। पण्णाससरासँण देह तुगु
तवणीय वण्गु ण णवपयंगु । जाणामहिवालयकुलसमरिंग सो रयणिहि थिउ अत्थाणमग्गि । पत्ता-तहिं राएं भषियसहाएं चक्क पडंति णिरिक्खिय ।।
गय चंचल जिह सा सयदल सिह णररिद्धि वि लक्खिय ॥९॥ प्रसन्म देवको माताके लिए दे दिया। इन्द्र प्रणाम करके अपने विमानमें चला गया। बालक इस प्रकार बढ़ने लगा मानो ज्योत्स्नाना पर वर्ष लाग्ने प्रहण करता हुआ शुभदर्शन कुवलय (पृथ्वीमण्डल-कुमुद समूह ) को सौभाग्य देता हुआ बालचन्द्र हो । कामाग्निके तापका विस्तार करते हुए अकलंक अखण्ड एवं प्रसन्नकान्त
घता-जिनभगवान् लोगोंको हर्ष प्रदान करते, इच्छित सुखोंको भोगते तथा शिशुक्रीड़ा करते हुए जब कुमारावस्थामें रह रहे थे तो साढ़े सात लाख वर्ष बीत गये ||८||
फिर उनके लिए प्राप्त राजलक्ष्मी मदनसे तापको प्राप्त हुई। मूच्छित उसे चमरोंसे हवा दी गयी, अभिषेकके षटजलोंसे उसे अभिषिक्त किया गया, मन्त्रीवरोंके द्वारा सचेत किया गया। वह शीच उठी ( राज्यलक्ष्मी ) और अपने सात अंगोंको ( स्वामी अभास्यादि ) को धुनती है, शत्रु, सुधी और मध्यस्थका अपने मनमें ध्यान करती है, अपने परिजनरूपी वस्त्रका संवरण करती है, मिले हुए माण्डलीक राजाओंका मनहरण करती है, देखनेपर जो खेद देती है, ऐसी यह उन स्वामोके वक्षस्थलपर निवास करती है, उस सुभगकी इन्द्रादिकोंने पूजा की तथा देवोंने नमस्कार किया। इस प्रकार सम्पत्तिके सैकड़ों सुख भोगते हुए उनके पन्द्रह लाख वर्ष बीत गये । उनका शरीर पचास धनुष ऊंचा था। स्वर्णके समान रंगवाले मानो नवसूर्य हों। जो नाना प्रकारके राबाभोंके कुलोंसे परिपूर्ण हैं, ऐसे दरबार में रात्रिके समय वह बेठे हुए थे।
पत्ता-वहां भव्यसहाय राजा अनन्तने एक टूटते हुए तारेको देखा। जिस प्रकार वह चंचल तारा सो टुकड़े होकर चला गया, उसी प्रकार उन्होंने मनुष्यके वैभवको देखा ॥२॥
२. P पसण्णु केतु । ३. A omita अहिं । ४. AP कुमरत्तणि । ९.१. AP महि । २. AP वरणरेहिं । ३. A मनत्थई । ४. P सरासणु ।