SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 337
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५ १० बंधिषि तित्यं करणोमगोत्तु सो संदणु णरवरिंदु बावीसमहोदहिपरिमियाड पुष्कं तरपवर विमाणवासि बावीस पक्वहि कहिं वि ससइ जाणवि तेत्तियहिं जि वच्छहिं rastr रूविषथारु धाम किं वण्णमि सुरवंड सुकलेसु अहं तयहुं धम्मोचयारि इह भरहखेति साकेयणाहु कुरारकालु पत्ता- लहु एयहुं दिणयरसेयहुं करहि धणय पुरवरु बरु ।। तं इच्छिवि सिरिण परिच्छिवि चलित जक्खु पंजलियरु ||३|| ૪ उeft केण कहिं वि पीय कत्थs हरिणीलमणीहिं काल ३ संणासे मुजइवह पवित्तु । सोलह दिवि व सुरिंदु | रिद्धपाणिपरमाणु काउ | तणुतेओहामियदुद्धरासि । हियण देव आहारु गसइ | सेविज अमरहिं अच्छ रेहिं । पेच्छ छट्ट परयंतु जा । व जीवित थिष्ट छम्माससेसु । बज्जरह कुबेर कुलिसधारि । पहु सीसे थिरथरबाहु | जयसामासुंदरिसामिसालु | कत्थइ ससियंत जलेहिं सीय । महिलि विडिय मेहमाल । ३ तीर्थंकर नाम गोत्रका बन्ध कर वह पवित्र मुनिवर मृत्युको प्राप्त हुए । यह पद्मरथ श्रेष्ठ राजा सोलहवें स्वर्ग में राजा हुआ। उसकी आयु बाईस सागर प्रमाण थी। साढ़े तीन हाथ ऊँचा उसका शरीर था। वह पुष्पोत्तर विमानका निवासी था, अपने शरीरके तेजसे दुग्धराशिको तिरस्कृत करनेवाला था । बाईस पक्षमें कभी सांस लेता था और उतने ही वर्षों में जानकर मनसे वह देव बहार ग्रहण करता था। वह देवों और अप्सराओंके द्वारा सेवतीय था । अवधिज्ञानके द्वारा छठे नरकके अन्त तक जहाँ तक रूपका विस्तार है, वहाँ तक वह देखता था । शुक्ललेश्यावाले उस देववरका में क्या वर्णन करूँ ? जब उसका जीवन छह मास शेष रह गया तो धर्मका उपकार करनेवाला इन्द्र कुबेरसे कहता है कि इस भरतक्षेत्रके अयोध्या नगर में स्थिर और स्थूल बाहुवाला साकेतका राजा सिंहसेन है । वह इक्ष्वाकुवंशीय क्रूर शत्रुके लिए कालके समान, जयश्यामा सुन्दरीका स्वामी श्रेष्ठ है । पत्ता - दिनकर के समान तेजवाले इनके लिए हे कुबेर, तुम पुरवर और घर बनाओ । उसे अपने सिरसे चाहकर और स्वीकार कर कुबेर हाथ जोड़कर चला ॥३॥ ४ वह अयोध्या नगरी कहीं स्वर्णसे पोली और कहीं चन्द्रकान्त मणियोंसे शोतल है। कहीं ४. १. AP कणयं । ३. १. A Pणाचं २. AP मुखउ । ३. A तिकरखपाणिपरिमाणकाउ; P तिकस्यणियपरिमाणकाउ । ४. AP पुप्फुतरं । ५. APविवाण । ६ उ वियाह । ७, A जाम । ८. ताम । 0 ९. A जीवित । १०. सर ।
SR No.090275
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages522
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy