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________________ ३१९ -५८.२.१३ ] महाकवि पुष्पदन्त विरचित घत्ता-हयधंसह गुणवंतहु अणिमिसकेउकयंतहु ।। 'भेयर्वतहु अरहतहु पणविधि पयई अणंतहुं ॥१|| पुणु कहामि कहाण कामहारि तहु केरळ सासयसोक्खकारि । धादइसंडहु पच्छिम दिसाइ वित्थिर्णि मेरुपुषिल्लभाई। परिहापाणियपरिभेमियमयरि मणितोरणवंदि अरिद्वयरि । पउमावल्लहु पउमरहु राव तह एकु दिर्षसु जायक विराउ | आणियसंमाणियबुजणाइ णीणियअवमाणियसजणाई। अविणीयइ धणमयषभलाइ पवणाहयतणजललषचलाइ। बहुकवाणिविडणिवरंजियाइ भंगुरभावेणं लेजियाइ। महिवालरिकइ एयइ खलाइ मणवारणबंधणसंखलाइ। बद्ध हवं णिवसमि एत्थु काई अणुसरमि सत्ततचाई साई। सिरि ढोर्यमि तणयह घणरहान संसार सरणु ष को वि फासु । इय चितिवि पासि सयंपहासु वउ लक्ष्य छिदिवि मोहपासु । छत्ता-अविहंगई धरिवि सुर्यगई एयारह जिणदिट्टई।। फयवसणइं इंदियपिसुणई जिणिवि पंच दपिट्टई ।।२।। पत्ता-ऐसे अन्धकारको नष्ट करनेवाले, गुणवान्, कामके लिए यम, ज्ञानवान् अनन्तनाथ अरहन्तके चरणोंको प्रणाम करता हूँ ||१|| और फिर कामको नाश करनेवाली उनकी शाश्वत सुख देनेवाली कथाको कहता हूँ। घातकीखण्डकी पश्चिम दिशामें विस्तीर्ण मेरुके पूर्वभागमें अरिष्ठ नगर है, जिसके परिखाजलमें मगर परिभ्रमण करते हैं और जो मणितोरणोंसे युक्त है। उसमें पपादेवीका प्रिय राजा पपरप था। उसे एक दिन विराग हो गया। जिसमें दुर्जनोंको लाया और सम्मानित किया जाता है, तथा सज्जनोंको निकाला और अपमानित किया जाता है, जो बविनीत और धनके मदसे विह्वल है, जो पवनसे आहत तण और जलकणोंको तरह चंचल है, जो अत्यन्त कपटपूर्ण दृढविटोंसे राजाका रंजन करती है, जो अपने कुटिलभावसे दासीके समान है, मनरूपी हाथोकी बोधने के लिए श्रृंखलाके समान है, ऐसी इस दुष्ट राज्यलक्ष्मोसे बंधा हुआ मैं यहां क्यों निवास करता है। मैं उन सात तत्वोंका अनुसरण करता है। अपने पुत्र धनरयको वह लक्ष्मी देता है। संसारमें कोई किसीकी शरण नहीं है। यह विचार कर उसने स्वयंप्रभ मुनिके पास जाकर मोहरूपी बन्धनको काटनेके लिए व्रत ग्रहण कर लिया। पत्ता-जिनके द्वारा उपदिष्ट ग्यारह अलांगोंको धारण कर और दुःख उत्पन्न करनेवाले दपिष्ठ इन्द्रियरूपो दुष्यों को जोतकर-॥२॥ १०. A भषमता गुण । ११. A हयवंतह मर। २. 1. AP पावहारि । २. A विधिण्णमे । ३. A मावि । ४..A पाणि । ५. P परिसमिय । ६. AP दिवसि । ७. A कवडणि विडमइ रजियाइ; P कवडगिविरंजिया । ८. P डोइवि।
SR No.090275
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages522
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size15 MB
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