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________________ महापुराण [ ५७. २८.१३__ पत्ता-वजाउछ सम्वत्थह पविवि संजयंतु जिणतवि णिरउ ॥ तुहुं हुष्ट जयंतु बंभाउ चुर रिसि णियाणसल्लेण मुउ ॥२८|| कायराज जाओ सि भयंकर । इयरु वि पाउ मुर्णिदखयंकर ! अहमणिबद्धाउसु अगार अहि य उ अंतिममहिणारउ । पुणु वालयपहि बालु णिमण्णउ दुक्खपरंपराइ अण्ण । तसथाघरतिरिक्खभवआलइ णियडिउ हिंडमाणु गयकालइ । पविउलअइरावइ जइती भूयरमणि काण णि गंभीरइ । गोसिंगें घरिणिहि संखिणियहि संखुर्भड समुहसंखिणियहि । तावसेण संजणियउ तावसु पंचहयासणु सहइ सतामसु । दिवतिलेयपुरि खेयरराणउ जोइवि जंतउ सकसमाणउ । णाम सुमालि णिबंध णिबद्ध अपणाणे नियतवाहलु लद्धउ | खगधरणीहरि उत्तरसे णिहि णयलवल्लहपुरि सुहाजोणिहि । विज्जदादु खगु पिय विज्जुप्पट मुहससियरधवलियदसहिसिवह । ताहं बिहि मि हियइच्छियरूवार हरिसिंगु मुव सुट संभूयः । विजानु णामें दढयरमुउ जगदूयाणुरूल भडसथुन । छत्ता-इदु भाई तुहारउ गहययर मेरधीरु परिचसभउ || एसम्मानरत इरिश परसेगर मोमवाम ॥२९॥ पत्ता-वज्रायुध सर्वार्थसिदिसे च्युत होकर जिनतपमें निरत संजयन्त हुमा । और ब्रह्म स्वर्गसे च्युत होकर तुम निदान शल्यसे मरकर जयन्त हुए ||२८॥ मुनिका घात करनेवाला दुसरा भी भयंकर नागराज हुआ, पापकर्मसे आयु बाँधनेवाला, पाप करनेवाला नाम ( सत्यघोष ) सातवें नरकमें उत्पन्न हुआ। फिर दुःख परम्परासे विदारित वह मूर्ख बालुकाप्रभ नरकमें निमग्न हुआ। प्रस, स्थावर और तिर्यचोंकी अन्मपरम्पराके जालमें पड़ा हुआ वह घूमता रहा । समय बीतनेपर विशाल ऐरावती नदोके किनारे भूतरमण नामक गम्भीर जंगलमें गोशृंग तपस्वीकी भाग्यहीन शंखिका पत्नीसे मृगशंख नामका तपस्वी हुआ। सतामस वह पंचाग्नि तप सहन करता है। दिव्य तिलकपुरमें इन्द्रके समान जाते हुए सुमालि नामक विद्याधरको देखकर उसने निदान बांधा और उम अज्ञानीने अपने तपका फल पा लिया । विजयाध पर्वतकी सुखयौन उत्तर श्रेणी में विद्युदंष्ट्र विद्याधर और उसकी प्रिया विद्युत्प्रभा थी, जो अपने मुखरूपी चन्द्रमासे दसों दिशापथ धवलित करती थी। वह मृगशृंग मरकर उन दोनोंसे मनचाहे रूपवाला पुत्र हुआ। विद्युदंष्ट्र नामका दृढ़तर बाहुओंबाला, योद्धाओंके द्वारा संस्तुत और यमदूत्तके समान घता-यह महान् मेरुके समान धौर और परित्यक्त-भय तुम्हारा भाई, पूर्वजन्मके शत्रु इसके द्वारा आहत होकर-परमेश्वर होकर मोक्ष गया है ॥२९॥ २९. १. A अहमु । २. P वालय' । ३. A भयजालह । ४. A हरिणसिंगु हूय उ तपसिणियहि; P संखु व भव समुहस'पणियहि । ५. A "पुरखेयर । ६. A वाजदाहु । ७. A विजप्पह । ८. विज्जुदाढु 1
SR No.090275
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages522
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size15 MB
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