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पचच्छिउ
बंदिवि खरतवतायें खीण छड कम ता सो तंब चूल फणिणारठ दीहुकाल संसद सरेपिणु जायव अजय बिसमखयालइ मुहविससिहि मैकियसारंगड फर्णेताडण फोडियधरणीयलु वश्वसदंषु चंडु अवलोइवि मरणि विधीरण ण मुई अहिणा ददावहिं द्दिलियई मणिवासविसेसव रिट्ठ
महापुराण
२१
।
ताच तासु विड़ जासी रयणत्तयहु कुसलु फुड पुच्छिउ । णरयहु पीसरेवि हिंसार । अण्णाई अंगाई धरेष्पिणु । फुल्लिय चलकलंबत मालइ । मोडिय बियिविहंग | वयणरंधलियवर्णमयगलु । खणि आहारु सरीरुपमाइवि । विणि वि पाय थिरु थई । कसमसंति चावतें गिलियई । actors मरेकाविट्ठछ ।
५७.२१.१
पत्ता- तर्हि रुययविमाणि मणोरमणि जायउ अमर कप || सो अजय चोत्थइ णरय बिलि विडिङ मुणिवररवहु ||२१||
२२ यवंतहु अचराइयरायहु ।
चक्कर जयलच्छिसद्दायहु
२१
"
तीव्र तपतापसे क्षीण उन सुनिकी वन्दना कर वे उसके निकट बैठ गयीं। शीघ्र ही उसने 'कर्मक्षय हो' ये शब्द कहे तथा रत्नत्रयको कुशलताका प्रश्न पूछा। तब वह हिसारत नारको कुक्कुट सर्प नरकसे निकलकर लम्बे समय तक संसार में परिभ्रमण कर भिन्न-भिन्न शरीरको धारण करता हुआ, जिसमें बकुल-कदम्ब और तमाल वृक्ष खिले हुए हैं ऐसे विषम क्षयकाल वनमें अजगर हो गया। जिसने अपने मुखको विषज्वालासे हरिणोंको काला कर दिया है, जिसने वृrist मोड़ दिया और पक्षियों को उड़ा दिया है, अपने फनोंकी मारसे धरणीतलको फोड़ दिया है, जिसने अपने मुखरन्ध्र में बनके मैगल गजोंको डाल लिया है। ऐसे यमके दण्डकी तरह प्रचण्ड उसे देखकर तथा एक क्षणमें शरीरके आहारको कल्पना कर, परन्तु उन लोगोंने मरणमें भी धीरत्वको नहीं छोड़ा। वे तीनों संन्यास लेकर स्थित हो गये। अजगरने अपनी मजबूत दाढ़ोंसे उन्हें निर्दलित कर दिया और कसमसाते हुए उन्हें चबाकर निगल लिया। वे लोग हेमनिवास विशेषसे वरिष्ठ कापिस्थ स्वर्गेमें मरकर उत्पन्न हुए ।
घसा- वहाँ सुन्दर रूप्यक विमानमें सूर्यप्रभ देव हुआ। मुनिवरका वध करनेवाला वह अजगर चौथे नरक में गया ॥ २१ ॥
२२
जिन भगवान् के गुणगणका स्मरण करता हुआ वह सिचन्द्र श्रेष्ठ उपरमत्रैवेयकसे भवतरित २१. १. AP बलु । २. P संसारि । ३. APसि हिसिहहयता रंगउ । ४. A फलताडर्ण' ५. P " वणरपल । ६. A मुषक | ७. P पवई पपई । ८. A चक्कछ । ९Aई। १०. अमरवरं कपड़