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________________ ३०६ महापुराण [ ५७. १८.३पणइणिकंठेइ णिहिर णिहालहि पुत्तय सावयवय परिपालहि । पुत्तय णिरु विचित्तु संसार पुत्तय पहु वि होइ कम्मारउ | ता हियवट पिणे भिण्णई दंतिदंतु अवरुं डिवि रुग्णउं । पुते परिवारेण वि सोइट कुसमर्हि अंचिति हुयत्रापि होइउ । उवसमेण हूई पविमलमद थिउ घरि धम्मणिर सो णरवइ । रामयत्त सणियाण मरेप्पिणु कप्पु महंतु सुक्कु पावेप्पिणु । घत्ता-मंदारदामसोहियमबद्ध रयणाहरणषियारधरं ॥ सा हुई रविसंणिहणिलइ रविभाभासुरु सुरपवरु ।।१८।। पुणु फणिरायहु गुज्झु ण रक्खड आइशाहु कईतरु अक्खइ। काले जंते सुकिय लीला वरवेकलियविमाणि विसालइ | पुण्णयंदु पुण्ण उप्पण्ण वेरुलियप्पहु तहिं संपण्णउ । विसमविसमसरवाण णिवारिवि दसणणाणचरित्तई धारिधि । संभूयल संतहि हिरवाहि सीहचंदु उपरिमगेवजहि । इह रययायलि दाहिणसे ढिहि धरणितिलँयपुर रूढउ रूढिहि । पइ अइथेट पुरधि सुलक्षण रामयत्त जो चिर सेवियवण । सा सग्गास ढलिय पंकयकर सुय उप्पण्णी णामें सिरिहर । होता है । तब पूर्णचन्द्रका हृदय अपने पिताके स्नेहसे भर गया। वह उन हाथीदांतोंका आलिंगन कर खूब रोया । पुत्र और परिवारने इस प्रकार शोक मनाया तथा फूलोंसे उनकी पूजा कर उन्हें आगमें डाल दिया। उपशम मावसे उसकी बुद्धि निर्मल हो गयी। राजा अपने ही घरमें धर्ममें स्थित हो गया (धर्मका पाचरण करने लगा), रामदत्ता निदानपूर्वक मरकर महान् शुक्र स्वर्गमें गयी। ___ पत्ता-सूर्यके समान देवविमानमें* जिसका मुकुट मन्दार पुष्पमालासे शोभित है, जो रलाभरणोंका विचार करता है, तथा सूर्यको आमाकी तरह भास्वर है, ऐसा देववर हुई ॥१८॥ वह दिवाकर देव धरणेन्द्रसे फिर भी छिपा नहीं रखता और उससे कथान्तर कहता हैसमय बीतनेपर, जिसमें पुण्यलीला है, ऐसे विशाल वैदुर्य विमानमें वह पूर्णचन्द्र अपने पुण्यसे देव उत्पन्न हुमा । कामदेवके विषम राणोंका निवारण कर तथा दर्शन, ज्ञान और चारित्रको धारण फर, सिंहचन्द्र शान्त निष्पाप उपरि प्रेवेयकमें उत्पन्न हुआ। इस भरतक्षेत्रके विजया पर्वतकी वक्षिण श्रेणीमें परम्परासे धरणीतिलकपुर नगर है। उसका राजा अतिवेग और रानी सुलक्षणा थी। पहले जिसने वनमें साधना की थी, ऐसी जो रामवत्ता थी, वह स्वर्गसे च्युत होकर कोमल १८. १. A कठहो । २. A पियगेहें 1.1 A परधम्मि गिरउ । ४. AP°वियारहरु । ५. A रविभाभासुर ___P रविभामासुर । १९. 1. A"क्मिाणषिसाला । २. A पुषणहंदु । ३. P हि बि संपण्णव । ४. AP तिलयपुरि । ५. A जा सेषिय चिर पण | * भास्कर विमानमें ।
SR No.090275
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages522
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size15 MB
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