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________________ -५७.८.६] महाकषि पुष्पदन्त विरचित पदमु मंति सिरिभूइ विणीयर सैन घोसु अवरु वि तहिं बीयउ । विहसियसरलसरोरुहणेत्तष पउमसंडपुरि सेटि सुदत्तउ । तहु गेहि णिहि सुमित्तहि हयड भद्दमित्त सिसु णिरुवमरूबर । हिंडते जाएण जुवाणे देसंतक लंधिवि पहरीण। तेण किरणसंताणसिणिद्ध रयणदीवि वररयणई लद्धई। देसिएण सीहरि वसंते सुद्धसहावे बहुगुणवंतें। तकरभीएं रुइविच्छिण्णई सञ्चघोस मंतिहि करि दिण्णइं । पत्ता-पाउ अपपणु पुणरवि णियघरहु लेवि सहायसमागयउ ।। जा मग्गइ रयणई णिहियाई ताव लुद्ध लोहें हयउ ।।७।। पर देण संति तासु पियरयणई वाणवर घरि धार फुडु पुकार - पुच्छिउ रोएं कालउ तंबर दीणु स्यंत णि जि दीसद घोसहि सञ्चयोस किं जुत्त हर वि तुहं वि जइ चोर णिसत्तउ णाई विरत्तउ विडयणु णयणई। खलु लन्छीमपण अवहेरइ । हित्तउ काई वत्युणिउबर । पई दूसइ अण्णाउ परोसइ । ता विहसेप्पिणु बिप्पे चुत्तई। जणणि गिलाइ जइ डिभर सुत्तर । और विज्ञानोंमें विलक्षण और अच्छे लक्षणोंवाली रामदत्ता नाम की देवी थी । उसका प्रथम मन्त्री विनीत श्रीभूति था और दूसरा सत्यघोष था। सरल कमलसमूहका उपहास करनेवाले नेत्रोंवाला सुदत्त पद्मखण्ड पुरीका सेठ था। उसकी गृहिणी सुमित्रासे अनुपम रूपवाला भद्रमित्र नामक बालक हुआ। युवक होनेपर घूमते हुए देशान्तरको लांघकर पथ से थके हुए उसने रत्नदीपमें किरणपरम्परासे स्निग्ध उत्तम रत्न प्राप्त किये। सिंहपुरमें निवास करते हुए दूसरे देशसे आये हुए गुणवान् और शुद्ध स्वभाववाले उसने चोरोंके भयसे कान्तिसे चमकते हुए वे रत्न सत्यघोष मन्त्रीके हाथमें दे दिये। पत्ता-वह स्वयं चला गया और अपने घरसे सहायक लेकर आ गया। और अबतक वह रखे हुए रत्नोंकी याचना करता है तबतक वह लोभी सत्यघोष लोभसे आहत हो गया ॥७ __ मन्त्री उसके प्रिय रत्नोंको नहीं देता, जैसे विरक्त विटजन अपने नेत्र नहीं देता। यह वणिकवर घर-घर जाकर ओर-जोरसे पुकारता, लेकिन लक्ष्मीके मदसे वह उसकी उपेक्षा कर देता। एक दिन राजाने पूछा कि इसके काले नीले रत्नोंका समूह क्यों हर लिया गया है ? यह दोन नित्य रोता हुआ दिखाई देता है। यह तुम्हें दोष लगाता है और अन्यायको घोषणा करता है। बताओ सत्यघोष कि ठीक बात क्या है ? कि यह सुनकर ब्राह्मण मन्त्रीने हंसते हुए कहा-यदि मैं और तुम दोनों निश्चित रूपसे चोर हैं और यदि मो अपने सोते हुए बच्चेको स्वयं खा लेती है तो ३. A सो चिय सच्चघोस पुणु भणियउ; P सोत्तिय सम्मषोसु नहिं भणियन । ४. AP विपसिय Kदियसिय but corrects it to विहसिय। ५, AP सणिदई। ८.१.A वणि बरु पुंडरीउ पुकारइ । २. AP राएं वणिज चवंतड । ३. P तो।
SR No.090275
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages522
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size15 MB
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