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________________ २७८ महापुराण [५५.७.१४परिसह वसिहूई दिण्णकरा तिउणियदलक्खई मुत्त धर।। १५ धत्ता-तुहिणविणिग्गमणि महुआगमणि तीरोसरियजलालउ । रविकिरणहिं इणिवि हिमकण धुणिवि गिंमें जित्तु सियालउ ||७|| अवलोइवि सो दलवट्टियउ कालेण कालु पक्षट्टियउ। पहु चिंतइ अणुदिणु परिणव जणु तो दि ण मुंजइ धम्ममइ । चिरु चिनु दुचितहु णीणियां दिवि दिवभोयसुहं माणियउं । पुणु जीविउ जम्मणु आणिय तिहि णाणहि तिहुवणु जाणियउं । इंदिग्रवसेण ण विवेश्य हा मई विण अप चेइयर्ड। धर्णपुसकलतहि मोहियउ मयरद्धयबाणहिं जोहियउ। अच्छइ ण णियच्छमि कि पि किई अण्णमणु आपणु अण्णागु जिह। ता संवोहिउ लोयंतिहि अहिसित्तर सुरवरपंतियाहि । किउ देवयत्तसिवियारु णु गउ म ति सहेडयणाम वणु। घत्ता-माहचउत्थियहि ससहरसियहि छौबीसमि णवत्तइ ।। सहुँ सहसें णिवह इच्छियसिवह थिउ जिणु जईण चरित्तइ ॥८॥ राज्यगद्दी ( राज्यत्व ) पर स्थापित किया। तीनगुना दस-अर्थात् तीस लाख वर्ष उन्होंने धरतीका भांग किया। ___घत्ता-हेमन्तके निर्गमन और वसन्तके आगमन पर ग्रीष्म-ऋतु में सूर्यकिरणोंसे हिमकणों. को नष्ट कर जिसके तोरसे जल समूह हट गया है ऐसे शीतकालको जीत लिया ||७|| उस ( शीतकाल ) को ध्वस्त देखकर प्रभु विचार करते हैं कि "कालके द्वारा काल बदल दिया गया । मनुष्य प्रतिदिन बदलता रहता है फिर भी वह धर्ममतिसे युक्त नहीं होता। पहले मैंने चित्तको दुराचरणसे निकाला था, तथा स्वगंमें दिव्यभोगोंका उपभोग किया। फिर जोवन जन्मको प्राप्त हुआ। ज्ञान से त्रिभुवनको जान लिया। लेकिन इन्द्रियोंके वशीभूत होकर मैंने विवेकसे काम नहीं लिया। हा, मैंने स्वयंको नहीं चेताया। मैं धन, पुत्र और कलत्र में मोहित हुँ, कामदेवके बाणोंके द्वारा देखा गया है। किसी भी वस्तुको मैं किसी प्रकार विद्यमान (स्थिर ) नहीं देखता हूँ। अज्ञानीके समान भ्रान्त चित्त मैं अन्य है।" तब लौकान्तिक देवोंने सम्बोधित किया और देवोंकी पंक्तियोंने अभिषेक किया। उन्होंने देवदत्ता नामक शिविकापर आरोहण किया और वह शीघ्र ही सहेतुक नामक उद्यानमें पहुंचे। घत्ता-माघशुक्ला चतुर्थीके दिन छब्बीसवें उत्तराभाद्रपद नक्षत्र में शिवकी इच्छा रखनेवाले एक हजार राजाओंके साथ वह जिन जैनचरित्रसे स्थित हो गये ।।८।। ७. A तौरोसरिन । ८. १. AP परिणामइ । २.AP घम्मे मह । ३. AP घणमित्त । ४. A किहा । ५. A जिहा । ६. A बाबीसमि and gloss श्रवणनक्षत्र। ७. Aजाचारित्ता।
SR No.090275
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages522
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size15 MB
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