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________________ महाकवि पुष्पदन्त विरचित घत्ता — गड मोक्खहु अचलु अर्कपेमेह भरणरेसरवं दिव ।। जोइस विमाणवासिय पचर "पुप्फदं तस्य बंदि ||१८|| - ५४.१८.१६] इय महापुराणे विषद्विमहापुरिसगुणालंकारे महाभय्वमरहाणु पक्षिषु महाकइयंत विरइए महाकवे अहिताश्यक हंसरं णाम चडवण्यासमो परिच्छेम समत्तो ॥ ५४ इस प्रकार त्रेसठ महापुरुषोंके गुणालंकारोंसे युक्त महापुराण में महाकवि पुष्पदन्त द्वारा विरचित एवं महाभव्य मस्त द्वारा अनुमत महाकाव्यका अचक द्विपृष्ठ तारक कथाम्तर नामका चौवनयाँ परिच्छेद समाप्त हुआ ॥५४॥ २७१ पत्ता - अकम्पित बुद्धि भरतेश्वरके द्वारा वन्दित अचल मोक्षके लिए गया, ज्योतिष विमानों में निवास करनेवाले प्रवक्षत्रों द्वारा ॥ १३ A अपणु । १४. A पुष्कर्यंत 1 १५
SR No.090275
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages522
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size15 MB
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