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________________ २६७ -५४. १५. १४ ] महाकवि पुष्पदन्त विरचित पत्ता-अरिरुहिरतोयतण्हायतणु पविखहिं पक्वझडप्पियाई ॥ उम्मुच्छिल को वि महासुइडु लम्गत वइरिहिं विप्पियउं ॥१४॥ १५ दुबई-परिफुटकरलगलियमयधारालालम्भमलसरप ! को वि करिंददेवजुयसयणइ सुत्तर मरणणिहए ।। लद्धवीरभंडणमहोमिसे घारचंचुमक्खियणरामिसे । उच्छलतवीसदवसारसे कालयरक्खसमहाणसे। पहरभगागयभीरमाणुसे हम्ममाणभउभमियतामसे। पुत्ववइरसंबंधदारुणे वणगलंतवणवणारुणे। खयररायसंघायमारणे तारएण हरि कोकिओ रणे । कंतदंतगिरिभितिदारुणो जेम अप्प दिण्णो ण वारणो। यंधुकपणकदुयं सुविष्पियं जेम दूधपुरओ पयंपियं । अज्जु बाल फि व जुझसे संतमंतिमंत ण त्रुझसे। धरणिणाहजयलच्छिधारिणा भणिच महिवई दाणवारिणा। दीपए पंचभूयह ण लज्जसे मम पुरो तुम फाई गजसे। रायबायगव्वेण वग्गसे पैरहणाई फि मुक्ख मग्गसे। इय भणेवि मुका तिणा सरा पुंखलग्गहुंकारवरसरा। पत्ता-शत्रुके रुधिररूपी जलसे आशरीर, पक्षियों के द्वारा पंखोंसे आक्रान्त तया शत्रुओंसे बुरी तरह लड़ता हुआ कोई सुभट मूच्छित हो गया ||१४|| -run a . ..AA. . . .. . - --.' स्पष्ट रूपसे गण्डस्थलसे झरती हुई मदधाराकी लालसासे जिसमें भ्रमरशब्द हो रहा है, ऐसे नीदमें कोई सुभट हाथीदांतोंकी शय्यापर सो गया। जिसमें वीरों के युद्धका बहाना ढूंढ लिया गया है, जिसमें गोषोंकी चोंचोंसे मनुष्यों का मांस खाया जा रहा है, जिसमें वीसद ? वसा और रस उछल रहा है, जो कालदूत रूपी महाराक्षसका रसोईघर है, जिसमें प्रहारसे भग्न होकर भोरु मनुष्य चले गये हैं, आक्रमण करते हुए योद्धा रोद्रभावसे घूम रहे हैं, जो पूर्व वैरके सम्बन्धसे अस्पन्त दारुण है, जिसमें घावोंसे रक्तरूपी जल बह रहा है, जिसमें विद्याधर राजाओंके समूहको हिंसा की जा रही है, ऐसे युद्ध में तारकने हरि (द्विपृष्ठ) को ललकारा, "हे सुभट, अपने कान्तदांतोंसे पहारकी दोवारके भेदन में दारुण मज तुमने जिस प्रकार नहीं दिया, तथा जिस प्रकार तुमने भाईके कानोंको कटु लगनेवाले अप्रिय कथन इतके सामने किया; हे मूर्ख, उसी प्रकार तुम क्या नहीं युद्ध करते, शान्तिके मन्त्रिमन्त्रको क्यों नहीं समझते ?" तब पृथ्वीनाथकी विजयलक्ष्मीको धारण करनेवाले दानवोंके शत्रु (द्विपृष्ठ) ने राजासे कहा, "हे दोन, पांच महाभूतोंसे शर्म नहीं आती, तुम मेरे सामने क्यों गरजते हो । राज्यरूपी बातके गर्बसे तुम घमण्ड करते हो। रे मूर्ख, तुम पराया धन क्यों मांगते हो ?" यह कहकर उसने पुंखके साथ जिसमें हुंकारका स्वरवर लगा हुआ है ऐसे १५. १. AP पडिकार; K पडिकरि but eorrects it to परिपुर । २. AP महारसे । ३. AP "रसा यसे । ४. AP"माणसे । ५. A दारणो । ६. Aण 1. AP तेम । ८. AP पहरणाई;K पहरणाई but corrects it to परहणाई।
SR No.090275
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages522
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size15 MB
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