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________________ - १४.११.३] 'तो दिष्णु दूर दारावईसु जापचि तेण कुलकुमुय चंदु दूषण उत्त भुचवलविसालु संभरहि देउ गिरितुंगमाणु भडवर रिट्ठ मेल्लिव दुआलि नुहई पिण खयरिंद जासु इति सेव महाकवि पुष्पदन्त विरचित कलाणभूत | भीमारिभीसु । मलियकरेण । fage afg | सुमंत । कुलसामिसालु । रायाहिरात | वाराहिहाणु । तु भो दुहि । मा करहि रौलि | सह सामिण | तडु कवणु मल्लु किरिंदु पत्ता-तामणि दुबिट्टे वच्चति पासु । असितलिय देव | मुइरोससल्लु । रिंदु | पण सामि महारस हलहरु | अणहु सामण्ण माणूसह ह होसनि किं किंकरु ||१०|| ११ दुबई - जो मई भाइ भि' पर दुम्भइ दूयय तासु सीसयं ॥ तोरिणि तडत्ति मणिकुंडल मंडियगंडएसयं ॥ कायर्कतिओहामियस सहरु तहि अवसर भासइ जिम्वाहरु । पत्ता - तब द्विष्टने क्रुद्ध होते हुए कहा, "मेरे स्वामी बलभद्र हैं। सामान्य मनुष्यका अनुचर हो सकता हूँ ? ||१०|| २६३ १० ४५. सुणि । ६. AP मेलहि । ७ राि ११. १. AP १५ हैं नहीं तो मारे जाते हैं।" तब उसने कल्याणभूति नामक दूतको भीम शत्रुओंके लिए भयंकर द्वारावती राजाके पास भेजा। उसने जाकर और अपने दोनों हाथ जोड़कर अपने कुलरूपी कुमुदके चन्द्र उपेन्द्रसे भेंट की । दूत बोला, "आप मन्त्रसूत्र सुनिए। हे देव, बाहुबल से विशाल कुलस्वामीश्रेष्ठ गिरिके समान उन्नतवान तारक नामके राजाधिराजकी आप याद करें और योद्धावरोंमें श्रेष्ठ हे द्विपृष्ठ, तुम भी खोटी चाल छोड़कर पृथ्वीके प्रिय स्वामीके साथ झगड़ा मत करो। विद्याधरराजा, जिसका सामोप्य चाहते हैं, जिसकी तलवारसे त्रस्त देव उसकी सेवाको. इच्छा करते हैं, उसका प्रतिमल्ल कौन है? तुम क्रोध की शल्य छोड़ दो। करियर ले जाकर तुम राजाको प्रणाम करो। " २० क्या मैं किसी दूसरे ११ जो मुझे भृत्य कहता है, है दृत, वह मेरा दुश्मन है; में युद्ध में मणिकुण्डलोंसे मण्डितगण्ड देशवाले उसके सिरको तड़ करके तोड़ डालूँगा।" अपनी शरीरकान्ति से चन्द्रमाको पराजित करनेवाले
SR No.090275
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages522
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size15 MB
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