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________________ २५० १० [ ५३.९.९ 19 सुधरेपिमणपुरवरु थविज दिपाया एप्पिणु रिउछु' विविधं । fareer चोर कुहिणिउ दूसियड रथणत्तयमाभारें लोच पयासियड | धत्ता - बीयर वासरि पइसरिषि महाणयरंतरि ॥ कारण परिपरि परि ॥ ९ ॥ आवंतु भडारउ भावियज मंदिर सहसा वित्थरि थिङ एक्कू वरिसु रिसि तिव्वतवि गिद्धाडियमाडियमोहरह माम्म सुद्धबीयहि बलिउ वासिएण वासरि गमिइ पुल्लि वणि चवच वलि णियगोमणिगारव संखरव महिविवर गयण वण सम्म घर १० बिज्जाहर औश्य कुसुमकर महापुराण १० सुंदरराएं पारावियत । पंचविहु विभि अच्छरिडं । जिल्लरियभव संभेष विभवि । हरि बिसाइणस्वसगइ | artisten विणिद्दलिय । दिraft वरुणदिसि संकमिइ । उपाय णाणु कलि । घंटारय हरिरव पडहरव । ft घाय आइय बहु अमर । भूगोयर कंपाविय सघर । घता - तं परमप्पडं लटियक्त्व रवि से सहि ॥ बंद सुरवर णाणाहियोत्तसहा सहि ॥ १०॥ इन्द्रियरूपी कुटुम्बको दण्डित किया तथा अच्छी तरह सोते हुए मनरूपी पुरवरको पकड़कर स्थापित किया । धैर्यरूपी प्राकारको रचना कर शत्रुबलको खण्डित किया। विषयकषायरूपी चोरोंकी गलीको दूषित कर दिया, रत्नत्रयकी प्रभाके भारसे लोकको प्रकाशित कर दिया । धत्ता- दूसरे दिन महानगर के भीतर प्रवेश कर वह यतीश्वर आहारके लिए घर-घर परिभ्रमण करते हैं ||९|| १० सुन्दर राजाने आते हुए आदरणीयकी पूजा की और पारणा करायो । उसके प्रासाद में शीघ्र ही पांच प्रकारके विस्तृत आश्चयं उत्पन्न हुए। वह महामुनि एक वर्ष तक जिसमें संसार में जन्म लेनेकी सम्पत्ति नष्ट हो गयी है, ऐसे तीव्रतपमें स्थित रहे। जिन्होंने मोहरज उखाड़कर नष्ट कर दिया है ऐसे, वह माघ माह के शुक्लपक्ष द्वितीयाके दिन विशाखा नक्षत्र में चार घन घातिया कमका नाश कर देते हैं । उपवाससे दिन बितानेपर और सूर्यके पश्चिम दिशामें ढलनेपर, घव और आम्रवृक्षोंसे चंचल पूर्वोक्त उद्यानमें कदम्ब वृक्षके नीचे ज्ञान उत्पन्न हो गया । अपनी लक्ष्मीके गौरवसे युक्त शंखशब्द, घण्टाशब्द, हरिशब्द और पटह शब्द, धरतीके विवरों, गगन, वन, स्वर्ग और घरोंमें फैल गये । बहुतसे देव माकाशमें दौड़े और वहाँ आये। हाथमें कुसुम लेकर विद्याधर आये | पृथ्वी सहित भूगोचर काँप उठे । पत्ता - सुन्दर अक्षरोंसे जिन्होंने विशेषता प्राप्त की है, ऐसे नानाविध स्तोत्रोंसे इन्द्र उन परमात्माकी बन्दना करता है || १०|| १०. P पावा । ११. रिउदलु १०. १. A पराविव । २. P दिवि । ३ A वासवदिति । ४. P चवभूपवलि । ५. P बप । ६. AP आइय घाइये । ७. AP विज्बाहर बियसियकुसुमकर । ८ A लहि सहि
SR No.090275
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages522
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size15 MB
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