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महापुराण
[५२. २०. १९केसाकेसि हिं
पासपासिहि। उचलाउद लिहि
मुसलामुसलिहिं 1 इय सो जुजिझल
भीमुहलज्झिउ । दुबुहिस
ता बलहरें। अरिहकारिज
वाचे पेरिए। सो वि पराइड
चावविराइल । णं णवजलहरु
विद्धष्ट हलहरु। तेण उरस्थलि
अद्वियकलयलि। कंपियणियबलि
हरिसियपरबलि। बाहुसहाएं
जयथइजाएं। सीरें ताहिम
उद्ध जि फाडिउ । पणीलरबाहिति
हई कइ जयरधि । धत्ता-णाणाणहयरहि संधियसरहिं सहयहि सगयहिं सरहिं ।।
वेदिउ जिन्वहरु दूसइपास कई चिरंगयपमुर्ति !!२!!
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दुवई-मायासाहणाई मयतह माणियपहुपसायहं ।।
एकें हलहरेण रणि जित्तई सत्तसयाई रायहं ॥ सुंयरिवि पगुदिपणी तुप्पैधार केण वि विसहिय रिउखग्गधार ।
सिरु छिण्ण णिगय रत्तधार गय एंव बप्प धाराइ धार । ५ केण वि सुंयरिवि पहुअग्गेविंडु इच्छिर पडतु णियमासपिंडु ।
केण वि सुर्यरिवि पहुचीर रम्मु मण्णिज लंबतु सदेह चम्मु । भालों, मनुष्यकी भुजाओं-भुजाओं ( मह किलिविडिहिं), बालो-बालों, नागपाशों-नागपाशों, उपलउपलों, मूसल-मूसलोंसे, भयरहितमुख वह नीलरथ इस प्रकार लड़ा। दुन्दुभि-शब्दले बलमनने शत्रुको ललकारा । देवसे प्रेरित और धनुषसे शोभित वह भी आ गया। उसने हलधरको उरस्थलमें विद्ध कर दिया, जैसे नवजलपर हो । कल-कल होने लगा। अपनी सेना काप उठी । शत्रुसेना हर्षित हो उठी । तब जिसकी बाहु सहायक है, ऐसे बयावती के पुत्रने हलसे ताड़ित कर उसे आषा फार दिया। इस प्रकार नीलरथाधिपके आहत होनेपर और जय शब्द करनेपर
धत्ता-अपने सरोका सन्धान किये हुए अश्वों, गजों और रयोंके साथ चित्रांगद प्रमुख नाना विद्याधरोंने असह्य प्रसारवाले सैन्य और बलभद्रको घेर लिया ||२०||
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अकेले बलभद्रने मापाची सेनाधाले, अहंकारी प्रभुका प्रसाद माननेवाले सात सौ राजाओं को युद्ध में जीत लिया। प्रभुके द्वारा दी गयी धीको धाराको याद कर किसीने शत्रुको खड्गधाराको सहन कर लिया । सिर छिन्न हो गया। रक्तकी धारा बह निकली। कितने ही बेचारे भट धारा-धारामें हो चले गये। किसीने प्रभुके प्रथम आहारपिम्हको समझकर गिरते हुए अपने ही
७. A भीउहझिङ । ८. सयहिं । ९. A पलनिसंगय । २१. १. P°साहणेहि । २. A सुमरिवि; P सुअरिवि । ३. A रूपधार। ४. A सुअरित; P सुपरिपि ।
५. AP अग्गपिंडु । ६. A सुमरियि; P सुअरिवि ।