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________________ २३० ५ १० १५ रे ता भणिउ समरभरघुरमुरण कित्ति गुरुखवंत हताएं अवरु विपदं सदस्य हुलाउ हुणियपरिहवासु ता रवि कित्तिदीवियदियंत खगणाद्दहु खंडिउ चावदंड असरासणु शत्ति लेखि चूडामणि पाडित विष्फुरंतु मरुयचलंत चलमयर केउ बंध ठीण संतु बाणु रक्खयब पायइराणएण महापुराण १९ दुवई - लजिज्जइ रणेण पित्ते दुज्जसमलिणकारिणा ।। ओस जाहि राय किं एवं घुरिसगुणोहहारिणा || जनपदेवी | जणि केव विपिड घवंतु । जं आणलंघणु कडं बप्प सस तेरी पुणु म हर कासु । fuese arriधैत । गुणवंतु तो वि किन खंडेखंड | रायण वासु बाधि 1 पालि विडिय रवि तवंतु । दावंतरि थक् कार्मदेउ । तेणककित्ति "मारिज्जमाणु । विवेचिणए । is a viगु । fire मेहें पच्छाइरणं दिसु । सिहिजडणा णिजिव चंदमउलि । रिणा तास कुरंगु ससिसेइरेण पहु पोयणेसु अंतर इस तिगु तिसूलि [ ५२. १९. १ १९ अपयश और मलिनता के कारणभूत तेज रहित युद्ध से तुम्हें लज्जित होना चाहिए । हे राजन् तुम हट जाओ। पुरुषके गुणसमूहका अपहरण करनेवाले इस युद्ध से क्या ? तब यह सुनकर, युद्धका भार उठाने में समर्थभुज नीलांजना और प्रभादेवीके पुत्रने कहा, "हें महान शिक्षावाले अकोर्ति, प्रिय बोलनेवाले तुम्हें लज्जा क्यों नहीं आती ? हें सुभट, तुम्हारे पिता और तुमने जो घमण्डपूर्वक आज्ञाका उल्लंघन किया है, उससे अपने पराभवसे आहत हुआ हूँ । तुम्हारी. बहन फिर किसका मन अपहरण करती है। तब अर्कको तिने दिशाओंको दीपित करनेवाले धधक करते हुए तीर छोड़े।" उसने विद्याधर राजाके धनुषको खण्डित कर दिया। गुणवान् ( छोरी सहित ) भी उसके टुकड़े-टुकड़े कर दिये। तब राजाने शीघ्र एक और धनुष ले लिया, और तीरसे आहत कर चमकता हुआ चूड़ामणि इस प्रकार गिरा दिया, मानो आकाशतल में तपता हुआ सूर्य हो । जिसका वासे चलता हुआ चंचल मकरध्वज है, ऐसा कामदेव इसने में बीच में आकर स्थित हो गया । लक्ष्य बांधता हुआ, सरसन्धान करता हुआ, उसके द्वारा मारा जाता हुआ अर्ककीर्ति धनुर्वेद के विवेकको जाननेवाले प्रजापति राजाके द्वारा ऐसे बचा लिया गया, मानो सिंहके द्वारा त्रस्त हरिण बचा किया गया हो। उसने कामदेवको पराङ्मुख कर दिया। चन्द्रशेखरने पोदनपुर राजाको उसी प्रकार घेर लिया जिस प्रकार मेघने सूर्यको आच्छादित कर लिया हो । ज्वलनजदीने भीतर प्रवेश कर त्रिनयन त्रिशूलधारी चन्द्रशेखर को जीत लिया । ० १९. १. AP धूरभुण । २. A दियंति । ३. 4 षगंति । ४. AP खंड खंड । ५ AP बाणेह हणेवि । 4. A aguafrafc31 9. A reads a asb and b as a 1. ८. AP काम । ९. A बंधंतु तो 1 १०. P पारिज्जमाणु । ११. AP णासि । १२. A उपारद्धि गरुड मणं ।
SR No.090275
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages522
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size15 MB
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