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________________ -३८. ८. १३३ महाकवि पुष्पदन्त विरचित वत्ता तहि अस्थि सुसीमा णाम पुरि सरसहछण्णमहासर ।। "णंदणदणसंठियदेवसिरमउद्धरयणकर" सियघर ॥७|| परिहाजलपरिघोलिररसहिं हिमपंडुरपायारणिवसणहिं । विविह्दुवारंतरवरषयणहि गेहगवबुग्घाडियणयाई । धूंबधूमधम्मेल्लपकसहि. तोरणमोत्तियमालादसणहिं । लंषियचलचिंधावलिवस्थाहिं ठाणमाणलक्खणहिं पसत्थई । मंदिरकंचणकलसयथणियहि किं वणिजह सीमंतिणियहि । जवष्णहूं भेसइ विण सकाइ सुरवइ फणिवइ अवर वि सका । अस्थि विमलवाणु तहिं राणा जसु विहवेण ण सक्कु समाणउ । जसु सोहम् वम्महु भजद तेण अणंगसणु पडिवजा। जसु वइवसुवसु दंडहु संकइ तेयहु तरणि तवंतु चयकइ । पडिमयभडथड भड मंजंबहु तास गरिंदलच्छि भुजंतहु । जाणियसारासारविवेयर एकहि दिणि जायउ णिवेयउ । घत्ता-पुरु परियणु इय गय रह सधय अतेउरु अवगणिषि ॥ सीहासणछत्तई चामरइं गउ सर्यलई तणु मण्णिवि ।।८।। घत्ता-उसमें सुसीमा नामको नगरो है जिसके सरोवर कमलोंसे आच्छन्न हैं, तथा लक्ष्मीगृह नन्दनवनोंमें बैठे हुए देवोंके सिरोंके मुकुटोंकी किरणोंसे युक्त हैं ।।७।। ८ परिखाके जलोंको शब्द करनेवाली करपनियों, हिमको तरह स्वच्छ प्राकार रूपो वस्त्रों, विविध द्वारों के अन्तररूपी मुखों, घरोंके झरोखों रूपो उघड़े हुए नेत्रों, धूपके धुओं रूपो केशपाशोंसे काले तोरणोंकी मुक्तामालाओंके दौतों, लम्बे चंचल ध्वजोंको आवलियोंके वस्त्रों, स्थान और मानके प्रशस्त लक्षणों, मन्दिरोंके स्वर्णकलशोंके स्तनों वाली उस नगरी रूपी सोमंतिनी ( नारी)का क्या वर्णन किया जाये, जिसका वर्णन बृहस्पति भी नहीं कर सकता, देवेन्द्र नागराज और दूसरा कोई भी वर्णन नहीं कर सकता। उस नगरीमें विमलवाहन नामका राजा है, इन्द्र भी उसके वैभवके समान नहीं है, जिसके सौभाग्यसे कामदेव भग्न हो जाता है इसीलिए उसके द्वारा अंगहीनत्व धारण किया जाता है, जिसके दण्डसे यमको सेना डर जाती है, जिसके तेजसे सूर्य चमकता रहता है, शत्रुओंके हाथियों और योद्धाओं के समूहको नष्ट करते हुए तथा राजलक्ष्मोका भोग करते हुए उसे जिसमें सार और असारका विवेक जान लिया गया है, ऐसा वैराग्य एक दिन हो गया। पत्ता-पुर परिजन अश्व गज ध्वज सहित रथ और अन्तःपुरकी उपेक्षाकर, तथा समस्त सिंहासनों,छत्रों-चामरोंको तिनकेके बराबर समझकर चला गया |८|| १२. P महासरि । १३. P"वणमंडिय कसहिं । १४. AP "देवसिरि मउ । १५. P सियरि । ८. १. P घूपं । २. Aधम्मेल्लाह । ३. P रायमार्थ । ४. A उसु विहवें सक्कु वि ण समाणउ । ५. PT बइवसुपसु । ६. A बमक्काइ; P चमुक्का । ७. घडधर । ८. A सिंहासणं; । सिंघासण । ९. AP समलु वि सिंणु । -- --
SR No.090275
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages522
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size15 MB
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