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________________ २१७ -५२. ६. १० ] महाकवि पुष्पदन्त विरचित रहणेउरवा परवइ सबंधु सहुं गंदणेण चंदाहिचिंधु । अण्णेक्कु पयावर पोयणेसु आउँदछु सुद्छु खयकालवेसु । अण्णेक्कु मुसलि तहिं कसणवासु अण्णु वि जो दिवस पीयवासु । कि अखमि पहुसांगत्यु सासु च वि संकाइ णवंति जासु । घत्ता--णिसुणिषि तुह् पलणु खलयणमलणु देवयार साहेपिणु ।। वलइयधणुवलय णं खयजलय थिय महिरि आवेप्पिणु ॥५॥ दुवई-धवइ खगिदचंदु करवालविहंडियतुरयकरिसिरे ॥ रततरंतमत्तरयणीयरि णिहणविं रिठ रणारे ।। ता कहए मंति णामें विहार जगडिभा पवहिं तुह जि ताउ । जइ आणालंघणु फयट तेहि सुय दिण्ण पडिच्छिय पत्थिवेहिं । एहल आयाह णराहिवाई पेसिज्जउ दूयउ को वि ताई। सो दूयउ जो भासापवीणु सो दूय जो पंडित अदीषु । सो दूयड जो हिमाणि दाणि सो दूयउ जो मिर्यमहरवाणि । सो दूयउ जो गंभीरु धीर सो दूयउ जो जयवंतु सूरू। सो दूयट जो परचित्तलक्खु सो दूयउ जो पोसियसपक्खु । सो दूयच जो बुझियविसेसु सो दूयउ जो सुविसिट्ठवेसु । आक्रान्त किया है। रथनूपुरका स्वामी अपना बन्धु राजा ( ज्वलनजटी ), तथा पुत्रके साथ, चन्द्रमाके समान उज्ज्वल सर्पध्वजवाला एक दूसरा पोदनपुरका स्वामी प्रजापति क्षयकालके रूपमें तुमपर अत्यन्त क्रुद्ध है। एक ओर विजय बलभद्र नोलवस्त्रोंवाला है और दूसरा जो पोले यस्त्रोंवाला दिखाई देता है, मैं उसकी प्रभुसामर्थ्यका क्या वर्णन करूं ? देव भी शंकासे उसे नमन पत्ता-तुम्हारे दुष्टजनोंका मर्दन करनेवाले प्रस्थानको सुनकर, विद्यादेवियोंको सिद्ध कर, जिन्होंने धनुषकी प्रत्यंचाओंको तान लिया है, ऐसे वे, मानो क्षयकालके मेघोंके समान पर्वतपर आकर ठहर गये हैं ||५|| तब विद्याधर राजा कहता है, जिसमें घोड़ों और हाथियों के सिर तलवारसे स्खण्डित होते हैं, तथा रक्त में निशाचर तैरते हैं, ऐसे युद्धप्रांगणमें, मैं शत्रको मारूंगा।" इसपर विधाता नामका मन्त्री कहता है, "इस समय विश्वरूपो बालकके तुम पिता हो, यदि जन राजाओंने आज्ञाका उल्लंघन किया है और दी हुई कन्याको स्वीकार कर लिया है, तो महाधिपोंका यही आचार है कि उनके पास कोई दूत भेजा जाये। दूत वह है जो भाषामें प्रवीण हो, वह दूत है जो विद्वान और अदीन हो, वह दूत है जो स्वाभिमानी और दानी है, वह दूत है जो मधुर वाणी बोलनेवाला है, वह दूत है जो गम्भीर और धोर है, वह दूत है जो नीतिवान् और शूर है। वह दूत है जो दूसरेके मनका ज्ञाता है, यह दूत है जो अपने पक्षका समर्थन करनेवाला है, वह दूत है जो विशेषको ७. A चंदाहचिधु; T चंदाहनिंबु चन्द्रमागरियाः । ८. A आरटु । ६. १. गिदबंडु । २. A fणहणिवि। ३. A मियमडुरवाणि । ४. A अभिमाणि पाणि । ५. A साद । ६. A सुबिसुद्धवेसु । २८
SR No.090275
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages522
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size15 MB
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