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________________ २०४ [५१, ९.१३ महापुराण घत्ता-णियजणणविण्णु परियाणिवि भूभंग ॥ रायहु रवि कित्ति विउ पणाविवि अंग ॥९॥ हरिबलेहि ससुरउ जयकारिड तेण सिणेहसाहि वडारित। भुयभूसणकरमंजरिपिगि सालउ गाढंगाटु आलिंगिउ । हरिसंसुयजलेहि संसित्तउ सयल णिसण्ण सुमंतु पउत्तउ । दिणयर तबइ खवई जिणु कम्मई वम्महु सल्लइ वाणहिं वम्मई। सायक गिलइ सयलसरिसोत्तई __ ससहरु पीणइ जणवयणेत्तई। भंजणसत्ति महत समीरहु बलु अइअतुलु तिविट्ठकुमारह। एत्थु ण कि पि बप्प कोऊहलु णहूँ चवेडचप्पियकुंजरकुलु। एंव सीहु को करहिं णिपोलइ कोडिसिलायलु जइ संचालइ । तो जाणहुँ होसइ पुण्णाहिउ हरि हरिवंदियणाणिहिं साहिउ । १० आसग्गीवजीवरावणु धुळू माणेसइ तरणिहि जोवणु। घत्ता-माहियर खरिद एह मत विरएप्पिणु ॥ ___ जहिं तं सिलॅरण्णु तहिं गय कण्हु लएप्पिणु ॥१०॥ पत्ता-अपने पिताके द्वारा किये भ्रूभंगको जानकर अर्ककीतिने राजाको प्रणाम कर अपना सिर झुका लिया ॥९॥ १० __नारायणको सेनाने ससुरका जय-जयकार किया। उससे उनका स्नेहरूपी वृक्ष बढ़ गया । बाहुओंके आभूषगोंकी किरण-मंजरीसे पोले सालेका प्रगाढ़ आलिंगन कर लिया। हर्ष के आसुझों. के जलसे सींचे गये सब लोग बैठ गये । ( यह ) सुमन्त्र कहा गया कि दिनकर तपता है, जिन कर्मका नाश करते हैं, कामदेव, बाणोंसे मर्मको छेदता है। समुद्र, समस्त नदियोंके स्रोतोंको अपने में समो लेता है । चन्द्रमा जनपदके नेत्रोंको प्रसन्न करता है। पवन में बहुत बड़ी भजन शक्ति है, त्रिपुष्ठ कुमारमें अतुल बल है, हे सुभट, इसमें जरा भी कुतूहलकी बात नहीं। अपने नखोंको चपेटसे गजकुलको चोपनेवाले सिंहको कौन अपने हाथोंसे निष्पीडित कर सकता है ? यदि यह कोटिशिलातलको संचालित कर सकते हैं, तो हम लोग जानेंगे कि इन्द्रके द्वारा वन्दित ज्ञानियोंके द्वारा कथित नारायण पुण्याधिक होंगे। अश्वग्रीवके जीवको उड़ानेवाले यह निश्चयसे तरुणीके यौवन मानेंगे? मसा-मनुष्य और विद्याधर यह मन्त्र रचकर, जहाँ वह शिलारत्न था वहाँ नारायणको लेकर गये ॥१०॥ १०.१.AP सणेह । २. A°पिंगउ ३, AP गाळु गाह्र । ४. सहो पवेर । ५. AP तो । ६. AP पाहिं। ७. Kधु । ८. P सिलरम्म ।
SR No.090275
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages522
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size15 MB
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