SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 190
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ संधि ४९ दहमउ गुरु मई तुह कहिउ देउ मोक्खमाणससरइंसु॥ अवरु वि सुणि सेणिय भणमि एयारहमउ जिणु सेयंसु ॥ध्रुवका जासु ण मुका मार मगण जो जाणइ जीव गुण मम्गण । जेण ण खंडणु किट चारित्तहु तषपडभार णिचारित। जो ण वडिउ संसारसमुहह मुहिउ जेण तिलोउ समुहइ । अकयइ णिचइ पडिमारूवा जासु ण रमइ दिद्वितियेरूवइ । जो णाणे पेक्खइ णीसेसु वि पयजुयलइ णिवढइ जसु सेसु वि । जो सुझियमाहियम्महु विसहरू जो पंचिंदियविसहरविसहरू । जेण राज मेविय भुयंगय । जासु ण पत्तावलि षि मुरंगय । मालि ण दिज्जइ जसु विलक्षाउ जो अपणु तिहुर्याण तिल उल्लाउ। सन्धि ४९ ( श्री गौतम गणधर कहते हैं )-"मैंने तुम्हें दसवें गुरु ( तीर्थकर ) शीतलनाथके विषयमें बताया कि जो मोक्षरूपी मानसरोवरके हंस हैं। हे श्रेणिक, मोर भी सुनो-में ग्यारहवें श्रेयांस जिनका कथन करता हूँ।" जिसपर कामदेवने अपने तीर नहीं छोड़े, जो जीवके गुणस्थानों और मार्गणाओं को जानता है। जिसने चारित्रका खण्डन नहीं किया, तपके प्रभावसे जो शत्रभावसे रहित हैं, जो संसाररूपी समुद्र में नहीं गिरते, जिसने अपनी मद्रासे त्रिलोकको मुद्रित किया है। जिसको दृष्टि, अकृत्रिम नित्य प्रतिमारूप और स्त्रीरूपमें रमण नहीं करती, जो ज्ञानके द्वारा सब कुछ देख लेते हैं, जिनके चरण युगल में शेष संसार पड़ता है, जो पुण्यरूपी वृक्षके लिए मेघ हैं और पाँच इन्द्रियरूपी विषधरों के विषका अपहरण करनेवाले हैं, जिन्होंने रागरूपी विट को छोड़ दिया है, जिसपर टेदी पत्रावली A has, at the beginning of this Samdhi, the following stanza - सया सम्सो बेसो भूसणं सुद्धसील सुसंतुई चित्तं सम्पजीवेसु मेत्ती । महे दिवधा वाणी चारचारित्तभारो अहो खण्डस्सेसो केण पुण्णण जाधी॥१॥ This stanza in found in P at the beginning of Samdhi L. K does not give it anywherer १. १. AP सुणु । २. र तृयरूवा । ३. P adds after this : पूरधिमुक्कर बंधविसे सु बि, सममगु बहूधणेस गोसेमु वि. 1 ४. A महिसम्महु ।
SR No.090275
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages522
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy