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________________ [४८. १.१५ महापुराण जंदटुं सकाणणं महुसमम्मि व काणणं । वियसइ ससहररायं कमलं पिव रविभाहये । जो वणवासि चसी यल वयर्ण चंदणसीयल। जस्स पसाया सीयलं हवइ णविवि तं सीयलं । घत्ता-गुणभगुणीहि जो संथुख गुणगरुयगइ॥ दहमउ जिणणाहु है वि थुणविं सो दिवजइ ॥१|| उत्तुंगकोलखंडियकसेरु पुक्खरवरदीवइ पुज्वमेरु। तहु पुज्वविदेहइ वहइ विमल णइ कीलमाणकारंडजुयल। खरदंडसंडदलछइयणीर डिंडीरपिंडपडुरियतीर । दरिसियपयंडसोंडाललील लोलंतथलकल्लोलमाल । जुझंतचडुलकरिमयरणिलय परिभमियगहीरावत्तवलय । आसपखालियत साहसा जामेण सीय सीयल सगाह । दाहिणइ धणसंछैण्णसीम उवयंठि ताहि संठिय सुसीम । जसससिधवलियदिचकवालु तहि णयरिहि गरवइ पुहइपालु । जिन्हें देखकर देवेन्द्रका मुख उसी प्रकार विकसित हो जाता है, जिस प्रकार वसन्तकालके आनेपर कानन, और सूर्यको प्रभासे आहत होकर कमल खिल जाता है, जो बनमें निवास करते हैं, आत्माके वशीभूत हैं, जिनके बचन चन्द्रमाके समान शीतल हैं, जिन्हें नमस्कार कर मनुष्य शान्त हो जाता है ___ पत्ता-गुणभद्र जो आचार्यके गुणसे संस्तुत हैं, जो गुणोंसे महान् गतिशील हैं, ऐसे उन दसवें जिननाथ दिव्ययत्ति शीतलनाथको मैं प्रणाम करता हूँ ॥१६॥ जहाँ उन्नत सुअर जड़ोंको खण्डित करते हैं, पुष्करद्वीपमें ऐसा पूर्व सुमेरु पर्वत है। उसके पूर्वविदेहमें पवित्र सीता नामकी नदी बहती है, जिसमें हंसयुगल क्रीड़ा करता है, जिसका जल कमलसमूहसे आच्छादित है, फेनोंके समूहसे जिसके तट धवल हैं, जिसमें प्रचण्ड जलगजोंकी कीड़ा दिखाई देती है, जिसमें चंचल स्थूल लहरों की माला है, जो लड़ते हुए गजों और मगरोंका घर है, जिसमें गम्भीर जलावतोंके समूह परिभ्रमित हैं, जिसके तटवर्ती वृक्षोंकी शाखाओंको जलोंसे प्रक्षालित कर दिया है, और जो ग्राहोंसे युक्त है, ऐसी उस सीता नदीके दक्षिण तटपर धान्योंसे आच्छादित ऐसी सुसीमा नामकी नगरी स्थित है। उस नगरीका यशरूपी चन्द्रसे - -. ७. A विहस । ८. AP गुणगस्वमइ । ९. P हडं थुणामि सो । २. १. A उत्तंग; P उत्तुंग । २. "तडि साहिसाह । ३. A°सच्छष्ण ।
SR No.090275
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages522
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size15 MB
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