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________________ संधि ४८ उच्छिणियच्यिधम्मपत् ॥ सुणिसे शिवराय सीयलाइ तणिय कह ॥ ध्रुव ॥ १ जो परिपालियतिरयणो तिक्त्रं नारियदुवं तो परमागम कणकमलको साओ जो पहियासवदारओ णासिय णिश्यायारओ अमुविययओ जस्स पीस जणो जेव तेष उग्गयगयं तं वीच्छं पूइयं तइ वि खलं स्वइ तावयं एत्थ सह सीसया पजुपाडियसुरयणो । जस्स वयं परदुषहूं | जेण कओ परमागमो । अविणस्सर सिरिसाहओ । गोणिग्घरदारओ | पोसियपंचायाओ । जो दाइ अल्लओ । बस एडिं णिज्जेइ यणो । धरियं जीवेणंगयं । गंधमविहिपूइयं । हो हो चत्तावयं । जर कुणति ण सीसया । प १० सन्धि ४८ श्री गौतम स्वामी कहते हैं - पूछने में चतुर तथा धर्मकी प्रभाको अपनो आंखों देखनेवाले हे श्रेणिकराजा, तुम शीतलनाथकी कथा सुनो। १ में जो तीन रत्नों (सम्यक् दर्शन, ज्ञान और चारित्र) का पालन करनेवाले हैं, जिनके चरणोंसुर समूह प्रणत है, जिनका व्रत तीन तथा दुष्शपका निवारण करनेवाला है, तथा दूसरोंके लिए कठिन है, जो अत्यन्त सन्तुष्ट हैं, और श्रेष्ठ लक्ष्मी के कारण हैं, जिन्होंने परमागमोंकी रचना की है, जो स्वर्णकमलको कणिका के समान हैं, जो अविनश्वर श्रीको साधना करनेवाले हैं, जिन्होंने are areatar दिया है, जो वस्त्रहीन और गृहद्वारसे रहित हैं, जिन्होंने नोच आवरणका नाश कर दिया है, जिन्होंने पांच माचारोंका परिपालन किया है, जिन्होंने स्त्रियोंके कटाक्षको उपेक्षा की है, तथा जो दयासे अत्यन्त आर्द्र हैं, जिनसे यति जन अत्यन्त आलोकित होते हैं, जिस प्रकार वृषभेन्द्रों द्वारा शकट ढोया जाता है, उसी प्रकार जीवों के द्वारा रोगोंसे युक्त शरीर ढोया जाता है, जो बीभत्स और दुर्गन्धयुक्त है, गन्धमाल्य विधिसे पवित्र होते हुए भी जो दुष्ट, नश्वर और मन्तापदायक है, जो आपत्तियोंसे रहित नहीं है ऐसे शरीर में जिसके शिष्य रति नहीं करते, १. १. APA पालि । २. A कणकलर्स । ३. वणिया पहलओं । ४. A ग्यास Pय मास । ५. Aणिज्जिययणो; P णिज्जद्द अणो । ६. A जत्थ । २०
SR No.090275
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages522
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size15 MB
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