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________________ -१७.२..] महाकवि पुष्पदन्त विरचित णमामो अणंत रईमोयणं । जिणं पुष्फयंतं. जिणा पुप्फयं तं। ण हत्थेण छित्त' दयाधम्मै छित्तं । सया जस्स सील बुहाण सुसीलं । पयासेइ संतो खर्ण इसंतो। महीदिण्णमारो कओ जेण मारो। घाता-तहु घरघरियषिसेसयं आयपणह महिमासयं ।। मेल्लह मोहविडंबणे अथिर घर घरिणी घणं ॥१५॥ दीवि खरंसुदीवि कुसुमियतरु पुक्खरद्धि पुल्वामरमहिहह। पुज्यविदेहि वासु मंयरगइ णीरगहिर सीय सीयाणा पवलवंगपल्लवसुरहियजले मजमाणगजिरवरमयंगल 1 खयरीसिहिणधुसिणरसपीयल गुरुसरंगघोलिरमहुलिहचल। तडवरविडविपडियणोणाहल कोलियमहिसबंदहयणाहल। देइणिलोलमाणसूयर डल पक्खितुंडपविडियसयवल ! जिणपडिमा इव सार्वयसंगिणि किं वणिज दिन्वतरंगिण । सत्चरितीरि ताहि हयखलप स्थि भूमि माने जलया। युक्त हैं, ऐसे रतिका मोचन करनेवाले अनन्त जिन पुष्पदन्तको में नमस्कार करता हूँ। जिन्होंने कामदेवको अपने हाथसे नहीं छुआ। जिनका शोल सदैव दयाभावसे स्पृष्ट है कोर पण्डितों के लिए सुशील (व्रतों) का प्रकाशन करनेवाला है। घरतोपर प्राणियोंको मृत्यु देनेवाले विद्यमान कामदेवफो जिन्होंने एक सबमें नष्ट बाणोंवाला बना दिया। ___ पत्ता-ऐसे उन पुष्पदन्तके सैकड़ों महिमावाले श्रेष्ठ चरित्र विशेषको सुनो। मोहकी विडम्बना अस्थिर घर-गृहिणी और घरको छोड़ो ॥१॥ सूर्यको तीन किरणोंसे दोस पुरुकराध द्वीपमें कुसुमित वृक्षोंवाला पूर्व सुमेरुपर्वत है। उसके पूर्वविदेहमें मन्थरगतिवाली जलसे गम्भीर शीतल शीतोदा नदी है । जिसका जल नवलवंगोंके पल्लवोंसे सुरभित है, जिसमें नहाते हुए और गजित पाब्दवाले मैगल हाथी हैं, जो विद्याधरियोंके स्तमोंके केशररससे पोली है, जो बड़ी-बड़ी लहरोंपर व्याप्त भ्रमरोंसे चंचल है, जिसमें तटवर्ती वृक्षों के नाना फल गिरे हुए हैं, जिसमें मैंससमूह, अश्व और भील क्रीड़ा कर रहे हैं, जिसमें शूकर-कुछ कीचड़से खेल रहा है, जिसमें पक्षिसमूहके द्वारा कमल खण्डित कर दिये गये हैं, जो जिन प्रतिमाके समान सावयसंगिनी (भावक संगिनी, वापद संगिनी) है, ऐसी उस दिव्य नदीका क्या वर्णन किया जाये। उसके उत्तर तटपर खल-राजामोंका नाश करनेवाली पुष्कलावती नामको भूमि है। ६. Afठणं । ५. चिणं । ८. A धरणी। २. १. AP सीयल । २. A °जले; अलु । ३. गजिय । ४. A°मयगले; P°मयगल । ५. A पलिय । १. AP महिसाव । ७. A दहिणीलोल । ८. सिगिणि। ९, A सत्तरतीरे ।
SR No.090275
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages522
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size15 MB
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