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महापुराण
दृढरष, रानी सुषेणा, स्वप्न दर्शन (४५), इन्द्रका कुबेरको आदेश, सम्भवनाथका जन्म, रस्ल वर्षा (४६), जिनेन्द्र सम्भवनापका अभिषेक और अलंकरण (४७-५१), सम्भवनायका तपररण, नोबलझानकी प्राप्ति, देवताओं द्वारा स्तुति और समवसरण (५२-५४) गणधरोंकी संख्या और मोक्ष (५५-५७) ।
इकतालीसवीं सन्धि : .
५८-५ अभिनन्दनकी स्तुति (५८-५९), मंगलावठी देश, रत्नसंचम नगर, राजा महाबल, रानी लक्ष्मीकान्ता, राजाको विरक्ति और तपश्चरण, अनुत्तरविमानमें जन्म (६०-६१), इन्द्रके आदेशसे कुबेर द्वारा कौशलपुरीको रचना, स्वप्मकथन, राजा स्वयंवरका भविष्यकथन अहमेन्द्रका अभिनन्दनके रूपमें जन्म, इन्द्र के द्वारा अभिषेक (६२-६४), अभिषेकमें विशेष देवताओंका आह्वान (६६-६७), अभिनन्दनके यौवनका वर्णन, राज्याभिषेक (६८-६९), विरक्ति, लौका दियौता सम्बोधन, पारण, यलहान, देवेन्द्र पार स्तुति, निर्वाण (७०-७५)।
बयालीसौं सन्धि:
७६-८८ सुमतिनाथकी वन्दना (७६-७७), पुण्डरी किणी नगरीका वर्णन (७७), राजा रतिसेन अपने पृष बहनन्दनको राज्य देकर दीक्षा ग्रहण करता है (७८), अहमेन्द्र स्वर्ग में उत्तान होना, इन्द्रका कुबेरको मादेश कि वह जाकर अयोध्या भावी तीर्थकरके जन्मको व्यवस्था करे, मेयरथकी पत्नी मंगल का स्वप्न देखना (७९), राजा द्वारा तीर्थकरके जन्मका भविष्यकथन, कुबेर द्वारा स्वर्णवृष्टि (८०), जिनके जन्मपर देवेन्द्र द्वारा बन्दना (८१), जिनेन्द्रका अभिषेक (८२), सुमतिनाथको बालक्रीड़ा, राज्याभिषेक, राज्य करते हए जिनेन्द्रका आत्मचिन्तन (८३), लौकान्तिक देवोंका आगमन और उद्बोधन, दोक्षाग्रहण (८४), कैवरज्ञानको प्राप्ति, देवेन्द्रद्वारा स्तुति (८५), स्तुति जारी (८६), समवसरणकी रचना, उसका वर्णन, गणघरों का उल्लेख (८७), गणधरोंका उल्लेख, निर्वाण (८८)।
संतालीसवीं सन्धि:
८१-१-२ पमप्रभुको वन्दना (८९), वत्स देशका वर्णन, सुसीमा नगरी, अपराजित राजा (९०), राजाका आत्मचिन्तन, दीक्षा प्रहण करमा (९१), तपस्याका वर्णन; मृत्युके बाद प्रीतंकर विमानमें जन्म, ह माह शेष रहने पर इन्द्र के आदेशसे कौशाम्बी नगरीकी रचना और स्वर्णप्रसादकी रचना (९२), रानीका स्वप्नदर्शन (९३), स्वप्नफल कथन, जिनेन्द्रकी उत्पत्तिकी भविष्यवाणी, जिनका गर्भ में माना (९४), जिनका जन्म अभिषेक, बालक्रोड़ा (९५), महागजको मृत्यु, पपप्रभकी विरक्ति (९६), दीक्षाभिषेक और तपश्चरण (९७), सोमदत्त द्वारा आहारदान, तपश्चरण, केवलझानको उत्पत्ति, देवों द्वारा स्तुति (९८), स्तुति (९९), समवसरणकी रचना (१००), निर्वाणलाभ (१०१)।
चौवालीसवीं सन्धिः
१०३-१११ सुपार्श्वनायकी वन्दना (१०३), कच्छ देशका वर्णन, क्षेमपुरी राजाकी विरक्ति, तपश्चरण, शरीर त्यागकर भद्रामर विमानमें अहमेन्द्र (१०४), छह माह शेष रहनेपर इन्द्र के आदेशसे कुबेर द्वारा काशीकी वाराणसीकी पुनर्रचना, पृथ्वीसेनाका स्वप्नदर्शन (१०५-१०६),