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________________ १३. महापुराण [४६.६.१ तओ रोण छम्मेण णिच्छम्मयाए परं डिभयं दिण्णय अम्मेयाए । तवालग्गवारावलीमेईलालं ससिंगप्पहागिदिककूलं । रमंतष्ठराणेउरारावरम्म दिसादीसमाणुद्धजेणिदहम्म। फणिवाणियापायरायावलितं अदिदेवलंबतंकिंफिनिवर्स। लयामंडवासीणपिबाहरिवं तुरंगासासत्तकीलापुलिंद । वरीचंबणामोयलगाहिकपणे मओमत्तमायंगदतग्गभिण्णं । गुहाकिणकिणरालतगेयं सपायंतणिक्खित्तचंदकतेयं । णिओ सुंदर मंदर वेवदेवो तहिं तेहिं सो णाणणिकपभावो। पविच्छिण्णकुंभेहि कभीसगामी तिलोयंतवासीहिं तेलोकसामी। गुणुप्पण्णणेहेहि णिण्णटुणेहो अकूवारखीरेहि खीराहदेहो। जिणिदो जियारी जयंभोयमित्तो फणिदेहि देहि चंदेहिं सित्तो। घता-बुद्ध पर्वत जिणतणुहि फंतिई पयह ण होतउ ।। ___णं अमिउं ससका वियैलियर्ड दिट्ट महिहि धार्षद ॥६॥ उस अवसरपर उस मायावी इन्द्रने (भगवान् की) निष्कपट माँके लिए दूसरा बालक दिया और वह ज्ञानभाव से निष्कम्प उस देवदेवको सुन्दर मन्दराचल पर्वत पर ले गया, जो (मन्दराचल) तटपर लगी हुई तारावली की मेखला (करधनी) से युक्त है, अपने ही शिखरोंकी प्रभासे जिसके दिग्मण्डलों के तट पीले हैं, जो रमण करती हुई अप्सराओंके शब्दसे रमणीय हैं, जिसकी दिशाओंमें ऊँचे-ऊँचे जिन मन्दिर दिखाई देते हैं, जो पद्मावतीके चरणराग से (चरण-लालिमासे) लिप्त हैं, जो अदृष्ट और एकपर-एक अवलम्बित अशोकपत्रोंसे युक्त हैं, जिसके लतामण्डपों में विद्याधरेन्द्र बैठे हुए हैं, जिसमें घोड़ोंके उराधनोंपर बासक कोड़ा-पुलिन्द हैं। जिसमें नागकन्याएँ पाटोके पन्दनोंके आमोदमें लगी हुई है, जो मतवाले गजोंके दांतोंके अग्रभागोंसे विदीर्ण हैं, जिसमें किन्नर और किग्नरियां गीतोंका मालाप कर रहे हैं, जिसने सूर्य और चन्द्रमाको अपने चरणोंके नीचे डाल रखा है। कुंभीसगामी (गजगामी) का अविछिन्न कुम्भों ( पड़ों ) के द्वारा, त्रिलोक स्वामीका त्रिलोकके अन्तमें निवास करनेवाले देवोंके द्वारा स्नेहका नाश करनेवालेका मुणोंमें उत्पन्न स्नेह करनेवालोंके द्वारा दूधको मामाके समान वेहवाले जिनेन्द्रका, समुद्रक्षीरोंके द्वारा, शत्रुओंको जीतनेवाले विजयरूपी कमलके सूर्य श्री जिनेन्द्रका, मागेन्द्रों, इन्द्रों और चन्द्रोंके द्वारा, अभिषेक किया गया। पत्ता-गिरता हा वह दूष जिनवरके शरीरको कान्तिसे प्रगट नहीं होता हुआ, ऐसा मालूम हो रहा था मानो चन्द्रमासे विगछित अमृत धरतीपर दौड़ रहा हो ॥६॥ ६.१. P नंबयाए । २. A मेहसील: P मेहजालं । ३. AP विधवालं । ४, AP ककेहिल । ५. A णासंत । 1. A°लगाहिकिम । ७. P मयमत्त । ८. P कंति । ९. P वियलिउँ ।
SR No.090275
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages522
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size15 MB
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