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[४६.३.२३
महापुराण घत्ता-इय पेखिचि रायह राणियइ संतोसें आहासिस ॥
तेण वि तह मंगलदसणहु फलु पणइणिहि पयासिध ॥३॥
सुओ देवि होही तुहं तिरथणाहो असामण्णसंपत्तिवित्तीसणाहो। विही आगया वेवया पंक्यच्छो हिरी फंति कित्ति सिरी बुद्धि लच्छी। णिहीसेण गेहम्मि छम्मासकालं णिहित सुवणं सुवणं पहालं । चइत्तस्स पक्वंतरे दिमिरुले सुहोहायरे वासरे पंचमिल्ले । रिसी पोमणाहो चुओ सोहमिदो थिओ गम्भवासे पुलोमारिवंदो। सुपासाहिवे णिचुए संगपईि समुदाणहो रंधकोडीसएहि ।
हाजक्खणिक्खितमाणिकहि पडण्णेहिं मासेहिं रामकरहिं । सओ पूसमासे पडतम्मि सीए सुहे समजोयम्मि एयारसीए । पहूओ पहू पुण्णपाहोहमेहो । जगाणं गुरू लक्खणुप्पत्तिगहो। सपाया मग्गं सतारवाल खणे कंपियं झत्ति तेलोकचक। घत्ता-परतेस त कत्थइ विप्फुरइ अंधारउ णउ रेहइ ।
जन्मणु गु नि शुनागलि जिण विणणारं सोहा ॥४॥
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पत्ता-यह देखकर रानीने राजासे सन्तोषपूर्वक कहा। उसने भी अपनी प्रणयिनीसे मंगल स्वप्न देखने के फलका कथन किया ॥३॥
हे देवी, तुम्हारा असामान्य सम्पत्तियों और प्रवृत्तियोंका स्वामी तीर्थकर पुत्र होगा। कमल नेत्रोंवाली धृति, ही, कान्ति, कीति, श्री, बुद्धि और लक्ष्मी देवियो मा गयौं। कुबेरने उसके घरमें छछ माह तक प्रभासे युक्त सुन्दर रंगके स्वर्णको वर्षा को। चैत्रशुक्ल शुभयोगोंके आकर, पाचवोंके दिन ऋषि पमनाथ सौधर्म इन्द्रच्युत हुआ और इन्द्रके द्वारा संस्तुत वह गर्भवासमें धाकर स्थित हो गया। सुपारवनाथके निर्वाण प्राप्त करने के नौ करोड सागर समय बीतनेपर, जिनमें यक्षके द्वारा आकाशसे रत्नोंको वर्षा की गयी है ऐसे नौ माह सम्पूर्ण होनेपर, पूष माहमें शुक्लपक्षकी एकादशीके दिन शुभ इन्द्रयोग और ज्येष्ठा नक्षत्रमें पुण्यरूपी जलोंके मेष, विश्वगुरु लक्षणोंकी उत्पत्तिके पर प्रभु उत्पन्न हुए। पातालमार्गसे लेकर तारों, सूर्य और इन्द्र के साथ एक क्षणमें त्रिलोकचक्र कोप उठा।
पत्ता-कहीं पर भी दूसरेका तेज नहीं चमकता था और न अन्धकार ही कहीं शोभित पा; जिनरूपी विननाथ (सूर्य) का जन्म और उदय शोभित होता है ॥४॥
११. पगइगिहो। ४. १. P असावण । २. A णिहतं । ". A मिलले । ४. A पुणोमारिवंदो। ५. A सुपपाहिए ।
६. P पुषणयंभोहमेहो । ७. P अयाणं । ८. P सपायालसगं सतारं ससमकं ।