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-४५. १०.१६]
महाकवि पुष्पदन्त विरचित पस:-- इयगि धावीससमुदई ।।
तेत्तियवाससहासहि मुंजइ मणविण्णासहिं ।।९।।
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ससेइ सो पमत्त सहंत कठरेहओ अमस्सरोमकेसओ अमोह योहसं णिही किरी? कोडिमंडिओ अधूविओ सुगंधओ सहावजायभूसणो विचित्तचारुचेलओ जईि जहि विजोइओ गुणेहि सो अदुजसो मणेण चितियं हिं कवाडवेइतरे कुलायलावलीवणे जलतरणपावए तहि पि सीयतीरिणी गइंदघटुचंदणे
दुवीसपक्खमेत्तए। तिहत्यमेतदेहओ। ससंकसुकलेसओ। पहू तमपभावही। अपाढओ वि पंडिओ। अण्हायओ सिणिद्धओ। कैणतिकिंकिणीसओ। ललंतफुलमालओ। तहि तहि विराइओ। अणालसो अवामसो। खणेण गच्छए ताहिं। असंखदीयसायरे। रमेइ गंधमायणे। दुइजय म्मि दीवए। णिदाहडाहहारिणी। तडम्मि तीइ दाहिणे।
पत्ता-उसकी आयु, निद्रासे रहिल बाईस सागर प्रमाण पो। उतने ही हजार वर्षों {बाईध हजार वर्षों ) में वह मनसे कल्पित आहार ग्रहण करता ॥२॥
बाईस पक्षोंको यात्रावाले समय में वह सांस लेता। उसके कण्ठकी रेखा शोभित थी। उसका शरीर तीन हाथ प्रमाण था । मूंछ और केशोंसे रहित वह चन्द्रमाके समान निर्मल शुक्ल लेश्यावाला था। तमप्रभा नामक नरक तक अवधिज्ञानसे युझ था। जो किरोटकोटिसे मण्डित था, बिना पढ़ाये हुए भी पण्डित था। बिना धूपके हो जो सुगन्धित था। बिना स्नानके भो स्निम्प था, स्वभाव ही से उसे आभूषण उत्पन्न हुए थे, जो किकिणियोंके मधुर स्वरसे युक्त था, विचित्र सुन्दर वस्त्रोंसे सहित था, झूलती हुई सुन्दर मालाओंसे मुक्त था, वह जहाँ-जहाँ भी देखा गया, वहांवहीं सून्दर था। गुणों के कारण अपयशसे रहित, अनालम और तामसिक प्रवृत्ति से रहित था। मनसे जहाँ चाहता था, वहाँ एक क्षण में पहुंच जाना था। यह कपारवेदी और वेदीवाले असंख्य द्वीप सागरों, कुलाचलोंके पंक्तियनों और गन्धमादन पर्वतपर रमण करता। जिसमें रत्नोंकी ज्वाला प्रज्वलित है, ऐसे दूसरे द्वीपमें ग्रीष्मकी जलनका हरण करनेवाली सीता नदी है, जिसमें
१०. १. A P पत्ता 1 २. A P अमसु । ३, F पहत्तमप्यहाँ । ४, A किरीरिकोळि । ५. AP
अण्हाणि श्री 1 ६. AP कर्णत । ७. AP डाहधारिणी। ८. P गयंद ।