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________________ १२० १५ १० १५ गुणवंत संत महरिसिहिं १० "महिषं टयणिकंटयवहि --चक्रवद्दिसि रिलीलह दिन जिणु तेणील सुहावई रविप थिरं पियं निवारणा महाणिण मुसिं कथं त पिरासयं अदोस अरोसयं विहट्टिय चैलं खलं मैंओ मुणी अणप्पए बुहत्थुए विकरे समाणए महापुराण ९ आदसिय संसियसुहृदिसिहिं । पंचभूय तह हुय गरे हि । एंव सासु गयकाल ॥ मणहरणाम बाल ||८|| गई हूं । गुणप्पई । सुवं सुयं । सराइणा । पुणो तिणा । रई विसं । गयासवं । अहिंसेचं । अमोल । अतोयं । पोट्टि । मणोमलं ओ गुणी । सुकष्पए । अ सुकरे | विमाणए । [ ४१.८१२ दिखायी और सूचित की है, ऐसे गुणवान् और सन्त महर्षियोंके द्वारा मही और पत्तनोंके निष्कंटक स्वामी उस राजा के लिए पाँच आश्चयं उत्पन्न किये गये । पत्ता - इस प्रकार चक्रवर्तीकी श्रीलोलासे उसका समय निकलता चला गया। उसने वृक्षोंसे हरेभरे मनहर बनालय में जिनके दर्शन किये ||८|| ९ सुख प्राप्त करानेवाले, गतियोंके नाशक, सूर्यके समान प्रभावाले गुणोंके मार्ग, स्थिर स्थित, उन्हें राजाने प्रेमके साथ सुना और फिर चक्रवर्तीने गतिके अधीन सुख छोड़कर आस्रव रहित, आश्रयहीन अहिंसक प्रदोष मृषा शून्य अक्रोष, दोष रहित तप किया और चंचल दुष्ट मनोबल को नष्ट कर दिया। वह मुनि मर गये और वह गुणी महान विभासे युक्त शुभंकर सम्माननीय अच्युत विमान में अच्युतेन्द्र हुमा । १०. A महिषणिक्कंटयव हो; P महिष्वणिक्कंटियम हिहि । ११. A णरवइहो । तरुलीलइ । ९. १. A omita हिसयं । २. A सतोषयं । ३. Aवलं । ४. A मुख । ५. Pओ । ६.AP सुञए । १२. P
SR No.090275
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages522
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size15 MB
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