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________________ महापुराण [४२. १२.८दहसहास चउरो सयई मणपंजवहहं हयमयई। तेत्तिय पुणु पण्णासजुय वाइ तासु णिप्पण्णसुय । लक्खई गुत्तिसमय गणमि सहसई अवरु तीस भणमि । सरिसइं बंभीसुंदरिहिं तहु जायई संजमधरिहिं । णिच्चमेव भउलियकरह तिणि लक्ख सावयणरह। पंचलक्ख घरचारिणिहिं णारिहि अणुवयधारिणिहिं । विहरंतहु तेहु महिठाणाई वीसवरिसपरिहीणाई। पुर्वहं घडिमालाहयई एकवीसलेक्खइं गयई। कायविसग थिउ वियडि मा ससे संमेयतडि। मासि पहिल्लइ पक्खि सिइ ऐयारसिदिणि दिण्णसिइ। मघणेक्खत्तें णिन्वुयउ सहुँ जोइहिं णिक्कलु हुयउ। देविंदहिं जयकारियउ पुजिवि साहुक्कारियउ। अट्ठगुणालंकिउ सुमइ देउ मज्झु अवियेले सुमइ । घत्ता-भरहेण अण्णहि मि परमेसरु सो वणिज्जइ । सई अमराहि वेण गुणपुप्फयंतु जसु गिजई ॥१२॥ इय महापुराणे तिसटिमहापुरिसगुणालंकारे महाकइपुप्फयंतविरइए महामन्वमरहाणुमण्णिए महाकम्वे समइणिव्वाणगणं णाम दुचालीसमो परिच्छेओ समत्तो ॥५२॥ ॥ सुमहचरियं समतं ॥ २० मनःपर्ययज्ञानी दस हजार चार सौ, श्रुतमें निष्णात वादी मुनि दस हजार चार सो पचास । ब्राह्मी सुन्दरीके समान उनकी आर्यिकाएँ तीन लाख तीस हजार थीं। नित्यप्रति हाथ जोड़े हुए श्रावक तीन लाख थे। अणुव्रत धारण करनेवाली श्राविकाएं पांच लाख थीं। धरतीके स्थानोंमें परिभ्रमण करते हुए उनके बीस वर्ष कम, घटिकामालासे आहत इक्कीस लाख पूर्व वर्ष निकल गये। एक माह बाकी रहनेपर वह सम्मेदशिखरके विकट तटपर कायोत्सर्गमें स्थित हो गये। चैत्रशुक्ला ग्यारसके दिन, वह मोक्षलक्ष्मीको देनेवाले मघा नक्षत्र में दूसरे मुनियोंके साथ निर्वाणको प्राप्त हुए ( निष्पाप हुए)। देव-देवेन्द्रोंने उनका जयजयकार किया और पूजा कर साधुवाद दिया। आठ गुणोंसे अलंकृत सुमतिदेव मुझे अविकल सुमति दें। पत्ता-स्वयं देवेन्द्रके द्वारा जिनके गुणरूपी पुष्पवाले यशका गान किया जाता है, ऐसे उन परमेश्वरका भरत तथा दूसरोंके द्वारा भी वर्णन किया जाता है ।।१२।। इस प्रकार त्रेसठ महापुरुषों के गुणालंकारोंसे युक्त महापुराणमें महाकवि पुष्पदन्त द्वारा विरचित तथा महामव्य मरत द्वारा अनुमत महाकाव्य सुमतिनिर्वाणगमन नामका बयालीसवाँ परिच्छेद समाप्त हुआ ॥४२॥ ३. P च उरो य सई। ४. A मणपज्जवयहं गयमयई; P मणपज्जवह वि यमयई। ५. P सरसई । ६. A omits तह । ७. A परही णाई। ८. P पुण्णाहं । ९. P एक्कपुव्वलक्खई। १०. A मासमेत्तु । ११. A गारसि । १२. A P महणवखते। १३. A अग्गिदेहिं सक्कारियर; P अग्गिदेहि मंकारिय: । १४. P देउ मज्झु विमलमइ । १५. A पुप्फयंत । १६. A किज्जह ।
SR No.090275
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages522
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size15 MB
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