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________________ २२. १६.६] हिन्दी अनुवाद ७३ सुरतिके समान अपनी वधूका प्रियवर था। उसके नन्दी ओर नन्दीमित्र पुत्र हुए। नन्दीसेन भी उसके गर्भ में आया, फिर माता मनमोहन, घरसेन ( धर्मसेन ) और विजयसेन पुत्र हुए। घता - और भी उसकी पत्नीसे श्रीप्रभा ( श्रीकान्ता ), श्रीधर ( मदनकान्ता) पुत्रियाँ हुई, तीसरी में सबसे छोटो नामसे निर्नामिका विषम दरिद्रा और लोगों का बुरा करनेवाली ||१४|| १५ हमारा घर मोक्षसे विशेषता रखता था । वह निष्कलश ( कालुष्य और कलशोंसे रहित ), नीरंजन ( शोभा और कलंकसे रहित ) दिखाई देता है। मेघके नष्ट होनेपर, नभके आँगनके समान विद्धणु ( घन और घनसे रहित ) तूणीरके समान जो निष्कण ( अन्नकण ) सारियरणु ( युद्धका निर्वाह करनेवाला, ऋणसे निर्वाह करनेवाला ) था । जो कुकविके काव्य की तरह नौरस था, और जिस प्रकार वह कार भी कसे रहित था। आरु भाई-बहन रीतल दो हण्डे ! खल और चनोंको मुट्ठोका आहार करनेवाले । कमर तक वल्कलोंके वस्त्र पहने हुए, निकले हुए स्फुट होठ, सफेद केशराशि उस घर में हम दस लोग थे, आपस में लड़ते हुए और कठोर शब्द करते हुए। सफेद बड़े विरल लम्बे दांतोंवाले हम दूसरोंका काम करते हुए रह रहे थे। जिसमें हाथी विचरण करते हैं और जो पेड़ोंसे आच्छादित है, ऐसे उस जंगलमें एक दिन मैं गयो । वहाँ गम्भीर घाटियोंको धारण करनेवाले अम्बरतिलक महोधर में घूमते हुए मैंने ताम्र और माहुरके हरे पत्तोंसे झोली भर ली। और भी भारी लकड़ियोंका भारी गट्ठा सिरपर रख लिया, मानो दुःखों का भार हो ! धत्ता - जैसे ही में अपने घर लौटती हूं तब मैं लोगों को आते हुए देखती हूँ । रत्नों और अलंकारोंसे चमकते हुए सुरजन मानो जिनवरकी वन्दना करनेके लिए आये हों ||१५|| १६ उस लकड़ी के भारको, मानो दुःखोंके भारकी तरह धरतीपर रखकर, एक आदमीको नमस्कार कर कारण पूछा कि लोग कहीं जा रहे हैं। तत्र उसने कहा- "जो तीन गुप्तियोंसे युक्त, सिद्धार्थकाम और जितकाम हैं, जो परिग्रहसे रहित, शास्त्रोंको मनमें धारण करते हैं, जो के लिए कोष हैं, गुणरूपी मणियोंकी खदान हैं, जिन्होंने मोहपाश धो दिया है, जो तमूलमें २-१०
SR No.090274
Book TitleMahapurana Part 2
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages463
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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