SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 95
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २२. १४.७] हिन्दी अनु अपनी दिक्षी निवास करनेवाली थीं। तुम ललितांग देवकी स्त्री थीं। और इस समय तुम अत्यन्त मधुर बोलनेवाली और प्राणप्यारी हमारी कन्या हुई हो। तुम दुबली मत होमो, वह तुम्हें मिलेगा और हारकी तरह दोनों स्तनोंके बीच व्याप्त होगा। बालाकी बुद्धि लज्जासे माच्छादित हो गयो । फिर उसने (पिताने ) धामको इशारा कर दिया। इस प्रकार दृष्टान्त और कहानियाँ कहकर उस राजाने दिग्विजय के लिए कूच किया। धत्ता - नागराज अपना शरीर संकुचित कर थर्रा उठा डरकर वह कुछ भी नहीं बोला । राजाके चलने पर अध-गज-रथ और मनुष्योंके पैरोंसे पददलित होकर धरती काँप उठती है ॥ १२ ॥ १३ राजाके चले जानेपर, चंचल तमाल ताल और ताली वृक्षोंसे सघन, नव अशोक वनमें, महावृक्षों को बहुत समय तक संचालित कर और कोमल हाथरूपी कमलसे शरीरको सहलाकर वह स्फटिक शिलातल पर बैठी हुई थी। एक दिन, जिसने अपना हाथ गालोंपर रख छोड़ा है और . जिसके सफेद गण्डतलपर बालोंकी लटें चंचल है, ऐसी नवकदलीके पिण्डके समान कोमल वस बालासे घागने पूछा, "हे पुत्री ! हे पुत्री, तुम मौन छोड़ो। हे पुत्रो, पुत्री ! कृश शरीरलताको अलंकृत करो। हे पुत्रो, पुत्री ! अपनेको क्यों दण्डित करती हो । पानके बौड़ेको अपने दांतों के अग्रभागसे खण्डित करो। हे आदरणीये, तुम रहस्य छिपाकर क्यों रखती हो ? क्या तुम अपना म मुझसे भी नहीं कहतीं । घत्ता - यह सुनकर राजपुत्री निःश्वास लेती हुई अपना जन्म प्रकाशित करती है, ( और कहती है ) लताके लिए धरलोके समान तु मेरे लिए जननी है। हे मां, तुमसे क्या नहीं कहा जा सकता ||१३|| १४ मेरु पूर्व घातकी खण्ड में पूर्व विदेहके गन्धिल्ल देशमें, भूतग्राम ( शरीर ) की तरह प्रसिद्ध धनसे समृद्ध पाटली गांव है, जो वशी तपस्वी के समान गोरसादय ( गोरस और वाणोरस से युक्त ) है, जो हस्तिपालक के समान, करिसन • जानउ (कर्षण और हाथी शब्दके जानकर ) हैं, विशाल खलियानों से भरपुर होते हुए भी खलजनोंसे दूर हैं, हलधर होते हुए भी जिसे बलराम नहीं कहा जाता, जो हाथी के समान राजाके लिए ढोइयकर (कर देनेवाला, सूंड़पर ढोनेवाला) है, जो मानो उत्तम कामिनीका हाथ था, वरकंकणु ( बहुजल-धान्यसे युक्त और स्वर्णवलय से युक्त ) कसे उज्वल जो मानो गिरिपथको धाराके समान था, जो सेवकमें रतके समान, निजवs { अपने स्वामी, अपनी मेंढ़) की रक्षा करनेवाला था। उसमें नागदत्त नामका वणिक् था, जो
SR No.090274
Book TitleMahapurana Part 2
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages463
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy