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________________ २१. १४.१०] हिन्दो अनुवाद घसा-इस प्रकार मायारहित स्वधर्मके द्वारा श्रीरूपी कमलिनीका भ्रमर बह राजा एक क्षणमैं ईशान स्वर्गके श्रीप्रभ विमानमें युवा देव हो गया ।।१२।। १३ वह महाबल मरकर अत्यन्त महान् और अन्धकारको नष्ट करनेवाले मणिमय संपुट निलयमें सेनालझें उत्पन मनारमा विद्युत् उत्पन्न हुआ हो । वह दिव्य ललितांग देव हुआ. ललित अंग धारण करनेवाला मानो कामदेव हो। वैक्रियक नेत्रोंसे महावना. स्वर्णकी दीप्तिका तिरस्कार करनेवाला ! दो घड़ी में ही उसने सुरवनिताओंको रंजित कर दिया, जैसा उसका शरीर था वैसी हो उसकी यौवनश्री उत्पन्न हुई थी। और पुण्यके कारण यह भी हुआ, पैरोंके साथ उसके नूपुर भी गढ़ दिये गये, हाथके साथ मणि विजडित कंगन और सिरके साथ मुकुट भी प्रगट हो गया। मुकुट के साथ कुसुममाला भी चढ़ गयो और कण्ठके साथ श्वेत हारावली । वक्षके साथ पवित्र ब्रह्मसूत्र । और कटि तलके साथ चंचल कटिसूत्र । इस प्रकार उसके जन्मविलासको प्रकाशित करनेवाले वस्त्र और भूषण साथ-साथ उत्पन्न हुए। उसके नेत्रोंके साथ अपलक दर्शन था, मैं उसके लावण्यका क्या वर्णन करूं? पत्ता-उसके न रोम थे न हड्डियां और चमड़ा, न तिल ? और न मुंहमें मूंछे। घनोंसे निमित कंचनप्रतिमाके समान उसकी देह प्रकाशित थी ॥१३॥ शीघ्र हो वह देव, अपने बाहुओं और सिरपर दृष्टि डालता हुआ गर्भगृहमें बैठ गया। तब गम्भीर स्वरमें दुन्दुभि बज उठी। और देवता 'जय-जय' शब्द के साथ दौड़े। कल्पवृक्षोंने कुसुमवृष्टि की, देवांगनासमूहने सरस नुत्य किया। ये कौन हैं, मैं कौन हूँ, यह कौन-सा घर है ? वह अपने पैर हाथ और उर देखता है ? सन्तुष्ट होकर वह जैसे ही याद करता है कि उसके मनमें अवधिज्ञान फैलने लगता है। उसने जान लिया कि उसने स्वयंबुद्धिके द्वारा प्रेरित संन्यास मनुष्य जन्ममें किया था । उसे उठाकर सिंहासन पर स्थापित कर दिया गया, और देवोंने उसका अभिषेक क्रिया । उसने भी काम और कषायोंते रहित परमेश्वर जिनकी पूजा की। उरसे अपने चीन स्तनों. को प्रेरित करनेवाली चालीस सौ अप्सराएं उसके पास थीं । नक्षत्रोंको कान्तिके समान नखोवाली
SR No.090274
Book TitleMahapurana Part 2
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages463
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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