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________________ २०. २१. ११] हिन्वी अनुवाद हेसना, माका करना, माणा मरना, भरेखड़ा करना आदिको संस्कारसे बहुत समय तक जाना जाता है। जो दिखाई देता है वह क्षणवर्ती स्कन्ध है। हे राजन्, न तो आत्मा है और न पायबन्ध कर्म है।" पत्ता--तब मुनि सिद्धान्त के उस भक्कने क्षणवादियोंको उत्तर दिया । संसारमें बिना अन्यय ( परम्परा) की कोई वस्तु नहीं है । गायोंके शरीरका जलरस ही दूध बनता है ॥१९॥ यदि बेचारी वस्तु नहीं है, तो कछुके रोम, बन्ध्याका पुत्र और वह आकाशकुसुम भी हो. यदि वे नहीं होते तो बताओ एक क्षणके लिए कौन स्थित होता है और जो अस्तित्वयक्त है वह पुनः क्षयको प्राप्त क्यों होता है। जिनवरको छोड़ सत्यको कौन जानता है? जीवादिको छोड़कर तत्त्व परिणामी होता है। यदि कटा हुआ मन मन के भागको जान लेता है, तो अन्यके द्वारा स्थापित मनको अन्य ले लेगा। यदि तुम्हारे सब द्रव्य क्षणभंगुर हैं तो फिर वासना क्षणमें नाश होनेवाली क्यों नहीं है ? क्या वह स्कन्धों ( रूप विज्ञान वेदना संज्ञा और संस्कार ) से वासना बाहर है तो हे धृतं ! तुमने अननुभूतको क्षणिक क्यों कहा । तब विशाल बुद्धिवाला स्वमति कहता है-"मृगतृष्णा, स्वप्न और इन्द्रजाल जिस प्रकार होते हैं, उसी प्रकार यह सब इसकी माया है। अतः हे राजन् ! दिखाई देता भी विश्व वास्तवमें नहीं है। गुरु-शिष्य और धर्म तथा यह व्यवहार वास्तव में नहीं है और न स्वदेह है। पत्ता-सियार मांसखण्ड छोड़कर जलमें उछलती हुई मछलोके ऊपर दौड़ा। मांसको गोष आकाशमें ले गया और मछली डूबकर अपने स्थानको चली गयी । २०|| जिस प्रकार सियार उसी प्रकार मनुष्य भी दो प्रकारसे भ्रष्ट होता है। परलोकके लिए लगकर कौन नष्ट नहीं होता। झूठी बातें सुनकर ( मनुष्य) धैर्य छोड़ देता है और इस प्रकार नरक भोग अपने शरीरको दण्डित करता है। आकाश गिर पड़ेगा, यह सोचकर त्रस्त होना है। 'टिट्रिम अपने पैर ऊंचे करके रहता है। तब मुनिके चरणों में प्रणामसे विनीत चौथे मन्त्री ने कहा, "यदि कोई कारण और कार्य नहीं है, तो जब वज गिरता है, तो हरते क्यों हो? यदि चाज नहीं है, वह अर्थकारी हो सकती है तो स्वप्न के भीतर सिंहको ले आओ? उससे अहितरूपी गजराजको नष्ट कर दो, हे विद्वानों में श्रेष्ठ, तुम असत्य क्यों कहते हो ? न शब्द है, न तुम हो, न में है और न वस्तु । तो बताओ इष्टप्रवृत्ति कैसे होती है। जिनागम में कही गयी बात सुनो, जजनों के द्वारा भाषित नहीं सुनना चाहिए । पत्ता-तुम्हारे वंशमें अरविन्द नामका विख्यात राजा हुआ है। उसका पहला पुत्र हरिश्चन्द्र था, और दूसरा इन्द्र के समान कुरुविन्द हुआ ॥२१॥
SR No.090274
Book TitleMahapurana Part 2
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages463
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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