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________________ २०. १७.८] हिन्दी अनुवाद ३३ स्थलसे क्या ? चारित्रसे रहित शास्त्र से क्या ? पिताके चरणों के प्रतिकूल पुत्रसे क्या ? मनको सन्तान पहुँचानेवाले त्यागसे क्या ? प्रियको मुंह दिखानेवाले मानसे क्या ? अंकुशको नहीं माननेवाले गजसे क्या ? चाबुक को नहीं माननेवाले अश्वसे क्या ? जिसका अपयश फैल रहा है ऐसे मनुष्य से क्या ? रससे विगलित नृत्य से क्या ? पंचेन्द्रियोंके वशीभूत पुत्र से क्या ? प्रेमके परवश होनेवाले क्या ? दूसरे रमण करनेवाले परिजन से क्या ? मोहान्धकारवाले गुरुसे क्या ? अविनय करनेवाले शिष्यसे क्या ? मोठा आलाप करनेवाले दुर्जनसे क्या ? धर्मसे रहित जीवनसे क्या ? धत्ता - प्रसन्नमति स्वयंबुद्धि विद्याधरराजसे आगे पुनः कहता है- "हे राजन, धर्मका इतना सार है कि पर अपने समान दिखाई दे जाये ? ॥ १५ ॥ १६ सत्य और दया दान धर्म है, झूठ जीव हिंसासे अधर्म है । उसीसे यहाँपर खोटे मनुष्य ( अधार्मिक मनुष्य ) नारकीय नियंच और तीन शल्योंसे पीड़ित खोटे देव होते हैं। धर्मसे कल्पवासी देव होते हैं, अरहंत चक्रवर्ती चारण और मुनीन्द्र होते हैं। धर्मसे विश्व में विशाल चन्द्रमाके समान कान्तिवाले अहमिन्द्र और राम कृष्ण होते हैं जिनके सिरपर मणिमय मुकुट शोभित हैं ऐसे माण्डलीक और महामण्डल पतियोंके स्वामी होते हैं । प्रतिवासुदेव कामदेव, रुद्र और नाना प्रकारके राजा धर्मसे होते हैं । धर्ममे सिद्धान्तवेत्ता, वाग्मी और वादी पण्डित पैदा होते हैं। सौभाग्य, रूप, कुल, शोल, कान्ति, पौरुष, यश, भुजबल, विमल शान्ति आदि जो-जो भला गुणविशेष दिखाई देता है, वह समस्त धर्मका अशेष फल है । बत्ता - हे देव, सिररूपी कमल सफेद हो गया है, कितना भोग भोगा जायेगा ? मन, वचन और काफी शुद्धिसे जिनशास्त्रों में भाषित धर्म किया जाये ||१६|| १७ , है स्वामी, स्वर्ग और अपवर्गको सिद्ध करना चाहिए। तब महामति मन्त्री कुमागंकी शिक्षा देता है कि अनिधन - अनादि और अहेतुक पृथ्वी, पवन, अग्नि और जल ये चार महाभूत जहाँ जहाँ मिलते हैं, वहां वह चेतनाके चिह्न प्रकट होते हैं। गुण जल और मिट्टी में जिस प्रकार मदशक्ति उत्पन्न होती है उसी प्रकार इन भूतोंमें जीव उत्पन्न होते हैं । मात्मा और शरीर में भेद नहीं है । बताओ सूँड, कान या दौतमें कौन हाथी है ? जीव एक जन्मसे दूसरे में नहीं जाता। मनुष्य जिस कर्म से जीवित रहता है, वही करता है। जो दूसरेसे पूछकर अपनी इन्द्रियों और २-६
SR No.090274
Book TitleMahapurana Part 2
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages463
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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