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________________ २१. १५. ४] हिन्दी अनुवाद जिस प्रकार अंगुलियों के खुजलानेसे खुजली बढ़ती है, उसी प्रकार मनिके भाषण प्रियमुखदर्शन के द्वारा नित्यप्रति सेवित किया जानेवाला काम अत्यन्त प्रमाणहीन हो जाता है । लोभसे महान लोभ बढ़ता है, अहंकारसे तीव्र क्रोष बढ़ता है, नयहीन व्यक्तिको देखकर मान बढ़ता है, दूसरेसे प्रवंचना करनेपर मायाविधान बढ़ता है । अनुबन्धसे रति और मोह बढ़ता है, इस प्रकार जीव धर्मद्रोह करके राजा बनता है और फिर कुत्ता बनता है। संसारमें किसका राज्याभिमान रहा । जो कामको व्याधि उत्पन्न होती है उससे कम्पनके साथ शरीर सन्तप्त होता है । कहींसे भी लायी गयी सुमानिनी जायाकै द्वारा वह काम-व्याधि शान्त की जाती है। वह नारी स्वभावसे दुर्गन्धित और चटुल होती है, अन्यमें आसक्त धनगम्य और कुटिल होती है। पत्ता-भूख शरीरमें लगती है जो शीन भड़ककर शरीरको जला देती है, मैंने यह अच्छी तरह देख लिया कि शान्त करनेको विधि शरीर में नहीं है, वह परवा है ॥१३॥ १४ स्पर्श इन्द्रियके रसके अधीन पृथ्वीमें घूमकर कुछ लोग गाते हैं, कुछ लोग नाचते हैं, कुछ बांचते हैं, कुछ वर्णन करते हैं, कोई सोते हैं, कोई धुनते हैं, कोई धनके लिए पढ़ते हैं और लिखते है। कोई खेती करते हैं, कोई अस्त्र धारण करते हैं और कोई चाटुकमसे दूसरे हृदयवा अपहरण करते हैं । माते हुए विशिष्ट व्यक्तिको सहन नहीं करते, अपने आपको गुणवान् कहते हैं । नाना कोस धनको अर्जित कर, लाकर अपने घरमें इवा कर, दिनके अंशमें श्रमसे थक जाते हैं, मुंह फाड़कर आदमी सो जाते हैं। बढ़ रहा है घुरधुर शब्द जिनमें, ऐसी दोनों हवाएं स्वेच्छासे नीचे और ऊपरके मार्गों से जाती रहती हैं, नींदसे उनको थकान दूर होती है, खल ( खली) तो चवित होते-होते रस बन जाता है, लेकिन खाया हुआ आहार शरीरमें परिणत होता है और इलेष्मके साथ पित्त बन जाता है। सवेरे उठकर पुनः निःश्वास लेते हैं, और अपनी परिनयोंसे कहते हैं कि धनको रक्षा किस प्रकार करें? पत्ता-हरके कारण किसी भी बलवानकी आज्ञा थर-थर कांपते हुए स्वीकार करते है। इस प्रकार जिल्ला और मैथुनके रसका आस्वाद लेनेवाले जीव पापपूर्ण नरकमें जाते हैं ।।१४।। धनरहित कुलसे क्या ? अपने स्वामीगे रहित सेनासे क्या ? श्रेष्ठ जलसे रहिन मरोवरसे क्या? सुकलनसे रहित घरसे क्या ? पगिद्धतसे विहीन नगरसे क्या, परस्त्रियोंके नखास क्षत उर.
SR No.090274
Book TitleMahapurana Part 2
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages463
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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