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________________ ४५८ महापुराण [ XXXIII, केबाजी are श्रीपाल छह विद्याधर कन्याओंसे भेंट की, जिनसे उसने अन्त में विवाह कर लिया। इसी प्रकार उसने विद्युद्वेगा विद्याघरी सुखावतो और विष्णुलासे विवाह कर लिया ! XXXIII. सुखावती, पहली सन्धिमें जिसका वर्णन है, एक विद्याधर कन्या थी। उसके पास चामत्कारिक शक्तियाँ थीं। पहले उसने अपनेको एक वृद्ध महिलाके रूपमें प्रदर्शित किया। लेकिन श्रीपालने जब यह कहा कि उसके पास ऐसी विद्या है जिससे वह किसी भी बीमारीका उपचार कर सकता है, तब उसने वृद्ध महिलाका रूप छोड़ दिया । के दोनों सिद्धकूट गये और वहाँ जिनको बन्दना की। सभी नयी कन्याएँ जो श्रीपालको प्यार करती थीं, वहीं छायीं । उनके सामने सुखावतीने फिर अपनो विद्याका प्रदर्शन किया। उसने श्रीपालको वृद्ध बना दिया और उससे प्रेम करती रही। इससे उसकी मित्र कन्याएं उसका उपहास करने लगीं । उसने राजकुमारके गलेके मोड़का उपचार किया और अपनी बहन प्रभावतीका विवाह कर दिया । इसी बीच में अशनिवेग (विद्युदुगाफा भाई ) वहां आया। उसने श्रीपालको पहचान लिया । उसपर करण किया और विद्युद्वेगाकी सहायतासे वह वहाँ गायब हो गया । XXXIV. सुखावती वापस घर आयो, उसके पिताने श्रीपालसे उसका विवाह करने की बात सोची, परन्तु श्रीपालने इसके पूर्व अपने बड़े भाईको देखने की इच्छा प्रगट की । इसलिए उसे पुण्डरीकिणी ले जाया गया। रास्ते में उसने कई साहसिक कार्य किये उसे जंगल में एक बढ़िया हाथी मिला। हाथीने पहले श्रीपालपर आक्रमण करना चाहा परन्तु श्रीपालने अन्तमें उसे जीत लिया । । XXXV, सुखावती श्रीपालको साथ लेकर भीड़के सामनेसे पुण्डरीकिणी नगरकी ओर के गयी, आकाशमार्ग से । वह उसे उस क्षेत्रमें ले आयी जहाँसे दुष्ट घोड़ा उसे छोड़ गया था। नागबलने अपनी कन्या शिखाका विवाह श्रीपालसे कर दिया । उससे विवाह करने के बाद श्रीपालको सुखावती आगे ले गयी । इस में दो विद्याधर उसे मिले और उन्होंने पत्थर के खम्भेपर आपात करनेके लिए अनुरोध किया यह कहते हुए कि यदि वह तलवार से खम्भे के दो टुकड़े कर देगा, तो वह चक्रवर्ती होगा। श्रीपालने दो टुकड़े कर दिये । अपने मार्गपर जाते हुए उसे कई राजाओंने अपनी कन्याएँ दीं। समय बीतने पर उसने वे सब रत्न प्राप्त कर लिये जो एक चक्रवर्तीके पास होना चाहिए। धूम्रवेग नामक एक दुए, विद्याधरसे लड़नेके लिए जाते हुए - श्रीपालने पूर्वभवकी अपनी एक माँ ( सत्यवती ) से भेंट की जो इस समय यक्षिणी हो गयी थी। इस प्रकार कई साहसिक कार्योंको सम्पादित करनेके बाद, श्रीपाल सातवें दिन अपनी राजधानी में पहुँचा। उसने अपनी माता कुबेरश्री और भाई वस्तुपालसे भेंट की। श्रीपालने उन्हें बताया कि जो शक्तियों उसे प्राप्त हुई है, वे सुखावती सुधार कार्य सम्पादन के कारण, और वह उसकी पत्नी है । XXXVI. इसपर श्रीपाल से सभी कन्याओं का विवाह कर दिया गया। परन्तु विप्पलाने यह पसन्द नहीं किया कि उसका पति इतनी सारी कन्याओंसे विवाह करे इसलिए वह अपने पिताके घर आ गयी। श्रीपाल, फिर भी, उसके घर गया और उसने वापस चलने के लिए उसे मना लिया। इसी प्रकार सुखावतीको भी उसने अपने पास रहने के लिए राजी कर लिया । इसके बाद उसे चक्रवर्तीके सात रस्म प्राप्त हुए । उचित
SR No.090274
Book TitleMahapurana Part 2
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages463
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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