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________________ महापुराण [XXIX. नागिनको ससे सुनते हए देखा। अगले वर्ष भी राजा उसी स्थानपर आया तो उसने पाया कि नाग उसे छोड़कर चला गया और यह कि उसकी पत्नीने एक निम्न मातिक साप (जयड्ट) से मित्रता कर ली। राजाने अपने हाथ के कमलके पुष्पसे उन दोनोंको छुआ। राजाने रातमें परनोसे इस घटनाका उल्लेख किया। इसी बीच एक देव भाया और उसने राजासे कहा वह साप, और उसकी पत्नी नागन राजा के द्वारा छुई जाने और उसके नौकरों के द्वारा मारी जानेपर स्वर्गमें देवी हई। इसलिए देव राजाको स्वर्गीय अलंकार देकर चला गया। ___ जयका मन्त्री आया और उसने कहा, सुलोचना एक सुन्दर राजकुमारी है जो राना धकम्पन और रानी सुप्रभा की काया है। उसके पिताने कन्याको पौवनमें देखकर सोचा कि इसके लिए सुन्दर युवा पर ईडना चाहिए । तदनुसार उसने स्वयंवरका आयोजन किया । जयकुमार भी उसमें उपस्थित प्रा और सुलोचनाने उसका वरण कर लिया। राजा अर्ककीत बहुत कुछ हुया क्योंकि उसे मापसन्द कर दिया गया था । उसने जयसे युद्ध करना चाहा। इस अवसरपर सुलोचना जिनके पास गयी और उसने प्रतिज्ञा की कि यदि उसके कारण जय और अर्ककीर्ति, दोनों में से एक भी मरता है तो वह अनशन द्वारा मर जायेगी। युद्ध में, किसी तरह जयने अर्ककीतिको हरा दिया और उसे गिरफ्तार कर लिया। इसलिए सुलोचना घर चली आयी। इस बीच जय अकीतिके पास गया उसे समझाया कि वह उसके प्रति क्रोधको भूल जाये। XXIX राजा जय घर लौट आया और उसने अपने पिताको नमन किया। लौटते हए वह गंगानदीके सटपर ठहरा। एक हाथीने सुलोचनापर आक्रमण किया परन्तु वनदेवीने उसकी रक्षा की। सुलोचनाने उस देवीका परिचय पूछा। उसने बताया कि उसे विन्ध्याधी कहते है, वह विन्ध्यकेतु और प्रियंगषीकी कन्या है और वह अपनी वर्तमान स्थितिको इसलिए प्राप्त कर सको क्योंकि सुलोचनाने उसे पांच णमोकार मन्त्र सिखाया था। जयने जिस नागनको छुआ था, और उसके बाद उसके नौकरोंने जिसे मार डाला था, वह गंगामे मगर हुई, और पत्रुताके कारण उसने सुलोचनाको मारने के लिए हाथी भेजा था। एक दिन जय दरबार में बैठा हया था उसने देवी जोड़ेको देखा। उसे अपने पूर्वजन्मका स्मरण हो माया। वह यह कहते हुए बेहोश हो गया 'रतिवेगा, तुम कहाँ हो ।" बेहोशी दूर होनेपर, सुलोचनाने कहा कि यह मादा कबूतर है और पय उसका स्वामी है । पूर्वमव में । शोभापुर नगरम व्रतपाल नामका राजा था । देवश्री उसकी रानी थी। शक्तिषेण उसका मन्त्री पा। उसकी पत्नी अदवीश्री थी। एक दिन एक अनाथ बालक आया। उसने पूछा कि वह बचपनमें क्यों घूम रहा है। लड़केने मन्त्रीसे कहा कि इसकी सौतेली माँने उसे घरसे निकाल दिया है । मन्त्रीने उसे पृषके रूपमें गोदमें ले लिया, और उसका नाम सत्यदेव रखा। 11-12. सुलोचना कहती है कि पूर्वभवमें वह रविसेना नामको कबूतरी थी जब राजा जय पुरुष कबूतर पा रतिवर नामका 1 लोग कपटके द्वारा ठगे जाते हैं। सुलोचनाने पूर्वभषकी जो कहानी सुनायी, उसकी सौतोंने उसपर विश्वास नहीं किया और कहा कि यह उसकी चाल है जिसके द्वारा वह पतिके प्रेमपर विजय प्राप्त करना चाहती है। 12, जय और सुलोचनाके पूर्वजन्मोंकी कहानी यहाँसे प्रारम्भ होती है । 16. चारण मुनियोंकी एक श्रेणी है। इसके दो प्रकार है-जंघाचारण और विद्याचारण । दोनों प्रकारके मुनि आकाशमें विचरण कर सकते है 1 जंघाचारणको उड़नेकी विद्या चार दिनोंके उपवासोंके परिणामस्वरूप प्रास होती है। जबकि विद्याचारण अपनी विद्या से तीन दिमके उपवाससे उड़ सकते हैं।
SR No.090274
Book TitleMahapurana Part 2
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages463
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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