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________________ ३७. २३.११] हिम्बो अनुवाद गिरती हुई कुसुमांजलियों, ऊपर उड़ती हुई ध्वजावलियों, फल-अक्षत-धूप और विलेपनोंसे युक्त भिंगारों, कलशों और दर्पणों, प्रारम्भ की गयी विचित्र स्तुतियों के कलकल शब्दों और दूसरे नाना मंगलोंके साथ कपूर-चन्दन-अगुरुसे मिश्रित विभिन्न वृक्षोंको काटकर चिता बनायी गयो; फिर ऋषि परमेश्वरकी पूजा कर, कामदेवका नाश करनेवाले उनके शरीरको उसपर रख दिया गया । चरणोंमें प्रणाम करते हुए, अग्नीन्द्रने मुकुटरूपी अनलसे लाल स्फुलिंग छोड़ा। धत्ता-मनुष्यत्व नहीं पाने के कारण थरथर कापता हुआ, संसारके परिभ्रमणसे भग्न एवं संसारसे त्रस्त होकर मानो अग्नि जिनवरके चरण-कमलोंसे जा लगी ॥२१॥ मेघकी आशंका उत्पन्न करनेवाला धुआं उठा, मानो आगने अपना मल कलंक छोड़ दिया हो । फिर उसका ज्वालासमूह आकाशसे जा मिला और उसका शरीर आधे क्षणमें वापरूपमें बदल गया। उस कुण्डका ( चितास्थान ) गणधरोंने यमकी दिशा ( पूर्व दिशा) से सत्कार किया, मुनिबरोंने पश्चिम दिशासे, और ब्राह्मणों और क्षत्रियोंने घो, जो तथा तिल डालकर तीन दिशाओंसे आगकी पूजा की। उसे पवित्र पूण्यार्जन मानकर, दूसरे कई लोगोंने अग्निहोत्र यज्ञ स्वीकार कर लिया करुणालकष्ट कोनों बालों के सालुओं, हृदयकमल और नाभिविवरपर, बादमें मस्तक प्रदेश और मुकुटके अग्रभागपर विहित वह भस्म ऐसा मालूम देता है, जैसे शरीर यशसे मण्डित हो। घत्ता-जिस प्रकार तुम्हें मोक्ष-सुख प्राप्त हुआ है, वह प्यारा सुख मुझे भी हो, यह विचारकर इन्द्रने ऋषभके उस भस्मको वन्दना की ॥२२॥ "हे आदरणीय, जिस प्रकार तुम्हें बोधि प्राप्त हुई, येसो हमारे मनमें भी समाधि हो।" यह कहते हुए कल्पवासी देवों और विद्याधरोंने भस्मको वन्दना की। व्यन्तरदेवों, ज्योतिषगणों और भवनवासियोंने मी भस्मकी बन्दना की। महासती नन्दादेवी और यशोवतीने भस्मकी वन्दना की। दुःखसे पीड़ित मन भरतने और परिजनोंने भो भस्मको वन्दना की। जिसमें सिंहके शावकोंका शब्द है ऐसे पर्वतपर निवास करनेवाले माह माघमें कृष्ण चतुर्दशीके दिन सूर्योदयकालमें पुरुषश्रेष्ठ तीर्थंकर ऋषभके निर्वाण प्राप्त करनेपर शोकसे व्याकुल स्वजन समूह रोने लगता है, महानरेन्द्र भरत स्वयं शोकमें डूब जाता है कि लोक्यरूपी मन्दिरके आधार-स्तम्भ वीर युगके आदि ब्रह्मदेवको मैं कहाँ देखूगा।" घप्ता हे जिन, आपके बिना नेत्र अन्धे हैं, अशेष दिशाएं सूनी हैं। बेचारो उत्कण्ठित प्रजा अपने दोनों हाथ ऊपर कर रो पड़ो।।२३।।
SR No.090274
Book TitleMahapurana Part 2
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages463
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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