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________________ ३७. १६. १४] धनुश्री सुमिरि वीरान ४२३ १५ गुण, मोक्ष, तप और पुद्गल भी दो प्रकारका है। अरहन्त निर्जराको भी दो प्रकारका ते हैं। भुवन सीन हैं, रस्न तीन हैं, शल्य तीन हैं, गुप्तियाँ भी तीन हैं, जीवको गतियाँ भी तीन कही गयी हैं। जगको घेरनेवाले गर्व भी तीन हैं, गुरुव्रत तीन हैं, जगमें भोग भी तीन हैं, समयको नष्ट करनेवालोंने काल भी तीन प्रकारका कहा है। चार गतियाँ, चार प्रकारका संसारका संचरण; बालादि चार प्रकारका भरण भी कहा गया है। प्रमाण चार प्रकारका है, दान चार प्रकारक है; दिखाई देनेवाले द्रव्य भी चार हैं, चार ध्यान हैं, देवोंके निकाय चार हैं, चार-चार प्रकार को, धार-वार कषायें हैं । बन्ध चार प्रकारका है, उनका नाश चार प्रकारका है, गुणगणकी निवास विनय भी चार प्रकारकी है ? बन्ध मोर विनाशके कारण चार हैं। इस प्रकार कामदेवका नाश करनेवाले निन कहते हैं । पत्ता - सत् ध्यान पांच हैं, आचार विधि और श्रेष्ठ ज्ञान भी पाँच हैं, निर्ग्रन्थ मुर्ति पाँच प्रकार है, ज्योतिषकुल पांच हैं, इन्द्रियां भी पांच कही गयी है || १५ || १६ मुनि और श्रावकके व्रत पांच-पांच है। पाँच अस्तिकाय है। समितियाँ पाँच हैं, आश्रव और बन्धके हेतु पांच हैं । लब्धियों और महानरक पाँच हैं। सांसारिक शरीर पाँच होते हैं। गुरु पाँच होते हैं, सुमेरुपर्वत भी पांच होते हैं। जीवकाय छह होते हैं । समयकाळ छह होते हैं । लेश्याभाव छह होते हैं, सिद्धान्त और मद भी छह होते हैं। द्रव्य छह हैं, आवश्यक विधियाँ छह होती हैं । भय भी सात... प्रकृतियां आठ हैं, पृथिवियाँ आठ हैं, व्यन्तर देव और जीवगुण भी आठ हैं। नो नारायण, नौ बलभद्र, प्रतिनारायण भी नौ, दुःखका हरण करनेवाली निषियों भी | पदार्थ नौ प्रकारके | दस प्रकारका धर्म । सुकर्मा वैयावृत्य भी दस प्रकारका । भवनान्तवासी भावनसुर दस प्रकार के होते हैं, धरणेन्द्र और चन्द्रमाके साथ दस दिमाज शोभित होते हैं । रुद्र ग्यारह हैं, रुद्रभाव भी ग्यारह हैं। गर्वरहित श्रावक भी ग्यारह प्रकारके हैं। जिन वचनोंसे उत्पन्न पश्चात्ताप और अनुप्रेक्षाएँ बारह । चकका पालन करनेवाले चक्रवर्ती बारह | बारह प्रकार के तप । और श्रुतांग मी बारह प्रकार का । पत्ता* --चारित्र्य के प्रकार तेरह और क्रियाके स्थान भी तेरह कहे गये हैं। गुणस्थानोंका आरोहण चौदह प्रकारका है, और मार्गणा के स्थान मौ चौदह हैं ॥ १६ ॥
SR No.090274
Book TitleMahapurana Part 2
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages463
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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