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________________ ३७. १३.४] हिन्यो अनुवाद ११ चिरभवमें अजित गन्धारी, गौरी और प्रशप्ति विद्याएँ उसने छोड़ दी। गृह व्यापारकी तृप्तिको छोड़नेवाली जयकी पत्नी परिग्रहसे होन होकर स्थित हो गयी। तब प्रियके वियोगकी ज्वालासे सन्तप्तकाय अनन्तवीरकी माता पीड़ित हो उठतो है-'हे पुत्र, तुमने राजपष्ट क्यों स्वोकार किया कि बिना अपमें क्या तुमनेर इन्द्रियोंको पीड़ित नहीं किया। ध्यानके द्वारा अपने नेत्रोंको निमीलित नहीं किया। पति-वियोगमें तड़फती हुई और डोत्री हुई मुझसे क्या पाया जायेगा ?" इस प्रकार कहती हुई और अपने पुत्रको परलोककी बुद्धि देती हुई समस्त ऋद्धि छोड़ देती है। परन्तु मन्त्रियोंके मना करनेपर, कामनाओंको पूर्ति करनेवाले राज्यशासनके केन्द्र हस्तिनापुरमें वह स्थित हो गयो। तरूपी जलको नदी, जयकुमारकी वह पत्नी एक दूसरी आर्यिका हो गयो । ग्यारह अंगक्षुतोंको धारण करनेवाली' तथा नाना पुरों और प्रामोंमें विहार करनेवाली राजा अकम्पनकी पुत्रो उस देवीने रत्ना श्राविकाको अपना कयान्तर बताया। घत्ता-ब्राह्मो और सुन्दरी देवियों ने गुपसे पूछा-"त्रिलोकको देखनेवाले है देव, जयमुनिका अगला जन्म कहाँ होगा, और सुलोधना कहां होगी ?" ||१|| १२ तब भुवनश्यलोकके लिए कल्याणकर प्रथम तीर्थकरने कहा-"जय केवल विमलज्ञान उत्पन्न कर निर्माणस्थानको प्राप्त करेगा। यह सुलोचना भी, भावाभायका विचार करनेवाला अच्युतेन्द्र देव होगी। माना है देवोंकी रति और लक्ष्मीको जिनमें ऐसे अनेक वर्षों तक सुखका भोगकर, यह कनकध्वज राजा होगी, और तपकर तथा रागद्वेषका नाश कर, इन्द्रियशून्य और मृत्यु रहित सुख प्राप्त करेगी। जितना बड़ा पानी, उतना बड़ा नाल कमलके उत्पन्न होता है, इसमें भ्रान्ति नहीं है। जिनधर्मसे पशु भी देवेन्द्र होते हैं। जिनधर्मसे मोह की जड़ नष्ट होती है। जिनधर्म सबके कल्याणका मूल है। पत्ता जो मूहमति जिनधर्मको छोड़कर परधर्म में लगता है, चौरासी लाख योनियोंके संकटमें पड़ा हुआ वह कहीं निकल पाता है ? ||१२|| मागध मण्डलके परमेश्वर चेलनारूपो कलिनीके लिए नये सूर्यके समान क्षायिक सम्पक्त्वरूपी निधिका ईश्वर, मागामो तीसरे भवमें तीर्थकर होनेवाले राजा श्रेणिकसे, शंकाको पोंछ देनेवाले, ब्राह्मणरूपी आकाशके चन्द्र गौतम ऋषि कहते हैं- "मुनिसंघमें श्रेष्ठ जयराजा
SR No.090274
Book TitleMahapurana Part 2
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages463
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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