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________________ ३७.१०.१४] हिन्दो अनुवाद सबको याद करता है, आज में अब जाता हूँ। मैं अब अपना परलोक कर्म सिद्ध करूंगा।' पत्ता-संसारको चंचल गति सुनकर, अपने समस्त शरीरको कपाते हुए, पर्वतकी तरह धीर उस प्रणयिनीने चाहते हुए भी प्रियतमको मुक्त कर दिया ॥८॥ धर्मका आदर करनेवाले विजय आदि छोटे भाइयोंने भी दिये जाते हुए पृथ्वीराज्यको तृणके समान समझा और पिये गये मद्यके समान मदभावको उत्पन्न करनेवाला समझा। उसने अनन्तवीर्य पुत्रको बुलाया, जो गुण और विनयसे युक्त परलोक-भोर था। जयकुमारले उसे राजपट्ट बांधकर, मेघस्वरवाले उसने जिनकी जय-जयकार कर, जीव-अजीवके भेदको जानकर, नाना झानोंसे ज्ञेय जानकर, शत्रु और मित्र में समान दृष्टि कर, पांच मुट्ठियोंसे सिरके बाल उखाड़ लिये, और द्रव्य तथा भावकी दृष्टि से परिग्रहमुक्त हो गया । निग्रन्थ और मोक्षपथको देखनेवाले दीक्षासे अंकित जयको आठ सौ राजाओंके साथ मुनियोंने प्रणाम किया। उसने बारह अंगोंको सोखा और चौदह पूर्वोको उपलक्षित किया। वह मुनिवर मोहपाश छोड़कर, ऋषभेश्वरका गणघर हो गया। पता-हे कामदेवके प्रसारका निवारण करनेवाले आदरणीय, मैं पूर्वभवको गतियोंको स्मरण करती हूँ, मैं तुम्हारी अनुगामिनो बगो, मैं संयम धारण करूंगी ||९|| जब वणिरवरके कुलमें हम वणिक थे और शत्रुसे भयभीत होकर हमने अपना घर छोड़ा था, अपने किये गये कमके प्रभावसे प्रतारित हम भागते हए जंगल में गये। उस समय सधीजनोंके हृदयका चोर ( सामन्त ) शक्तिपेण अपनी कान्ताके साथ सरोवरपर मिला। जब हम लोगोंने मुनिकी वैयावृत्त्य की और किसी प्रकार हृदय धर्ममें स्थित हुआ । जब हम कबुतर हुए, हम दोनोंने श्रावक व्रत ग्रहण किये । जब हम लीलासे विशाल आकाशका उल्लंघन करनेवाले विद्याधर हुए, जब मुनिदानसे विस्मितमन हम दोनों सुर हुए। तबसे लेकर हम वधू और पति रहे। अरे, तुम्हारा चरित्र ही हमारा चरित्र है। (सुलोचनाके ) ये वचन, निःशेष जीवोंको शान्ति प्रदान करनेवाले मुनियरने पसन्द किये । सज्जनोंके गुणोंको ग्रहण करने में आनन्दित होनेवाली आपिका सुभद्राके लिए अपित उस सुन्दरी सुलोचनाने स्नेहके साथ अपने केश उखाड़कर फेंक दिये और व्रत तथा शीलगुणोंसे अपने शरीरको भूषित कर लिया । उन्मुक्त विचारसे देखनेवाली सुलोचनाने तपश्चरण ले लिया। घत्ता-केशरसे अरुण तथा स्तनहार-मणियोंसे मण्डित जो स्तन मानो कामदेवरूपी राजाके अभिषेकके घट थे, धूल-धूसरित वे अब मलसे मैले दिखाई दिये ॥१०॥ २-५३
SR No.090274
Book TitleMahapurana Part 2
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages463
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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