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________________ ३७. ८.१०] हिन्दी अनुवाद वाले उपशमभावसे शोभित अपनी पत्नीके साप पक्रवर्ती भरतके सेनापति राजा जयकुमारने स्तुति प्रारम्भ की-"विमल बुद्धि देनेवाले हे देव, आपकी जय हो, त्रिभुवन श्रेष्ठ आपको जय हो, जीवलोकके बन्धु और दयाल आपको जय हो, पुरुतीर्थकर स्वामिश्रेष्ठ आपको जय हो, है कल्पपक्ष, हे कामधेनु, जय हो। हे चिन्तामणि और मदरूपी वृक्षके लिए गज, आपकी जय हो । सचराचर लोकका अवलोकन करनेवाले आपको जय हो, संसाररूपी समुद्रके सन्तरण पोत (जहाज ) आपकी षय हो। घसा-हे परमपद, आपने एकानेक ( अद्वैत-सणिक आदि विकल्प ) के विकल्पवाले नयके न्यायसे परमतका निवारण किया है, आपने क्षमसे भयभीत स्थावर-जंगम जीवोंके लिए जोवदयाका कथन किया है ।।६|| मिथ्यामोह और रतिको बढ़ानेवाले तीन सौ त्रेसठ मतोंको जीतकर, हे स्वामी, आपने जिस तस्वकी रचना की है, उसे ब्रह्मा, विष्णु और शिव नहीं जानते। सभोके मनमें श्यामलांगी (सुन्दरी ) निवास करती है, वे विट, समभंगोको क्या याद कर सकते हैं। हे वीतराग, बाप तीनों लोकोंको जानते हैं। तुम परमात्मा और देवाधिदेव हो। मैं तुम्हारी चरणसेवा करूंगा। इस प्रकार जिनकी वन्दना कर, रमणीके दिनको जीलोनाले बारको ग कर उसने उनके साथ सम्भाषण किया-“हे प्रभु, छोड़ दीजिए, में जाता हूँ। प्रसाद करिए, मैं तपश्चरण लूंगा और दुःखका नाश करूंगा?" यह सुनकर राजाधिराज भरत कहता है-“हे जय, लो तुम्ही राज्य ले लो, तुम्हीं राजा हो जाओ । यदि तुम्हें गजपुर पर्याप्त नहीं है, तो परतीतल तथा रत्नों सहित इस समस्त नवनिधिरूपी घड़ोंमें संचित धनसे भी क्या पूरा न पड़ेगा। मैं अन्तःपुरमें प्रवेश करके रहता हूँ। तुम सिंहासनपर बैठकर घरतीका भोग करो। __ पत्ता-हे सेना प्रमुख, तुम तपोवनके लिए मत पाओ, शत्रुराजाओंसे विजय वृद्धिको प्राप्त तुम-जैसा वीर महासुभट भी (क्या?) विषय कषायोंसे जीता जा सकता है ? 11७) तब जिन भगवान्के अभिषेक-जलसे मन्दराचलको पोनेवाले इन्द्रने हँसकर कहाहे भरताधिप, आप इसे छोड़ दें, यह जाये। तपलक्ष्मीका घर यह गणघर होगा। तब भरतने देवेन्द्रके लिए इसकी स्वीकृति दे दी । जयकुमारने अपनी पत्नीसे पूछा-"जो पहले हम पिताके घरसे निकले थे, और जब सरोवरवासपर भागकर गये थे और (सामन्त) शविषेणने हमारा पालन किया था, और घरमें शत्रुके द्वारा आगसे जलाये गये थे, जो भंगुर नखोंसे हम विदीर्ण किये गये घे, और दोनों मार्जारके द्वारा मारे गये थे, हम मुनिवर उस दुष्टके द्वारा देखे गये थे, और जो मरघटमें जलाये गये थे, और जो वेक्रियिक शरीरकी शोभा धारण करनेवाले स्वर्गमें वधूवर हुए थे, और जो हमने वनमें भीमसाधुको पुकारा था, और जो वह त्रिलोकनाथ हुआ, हे सुन्दरी, मैं उस
SR No.090274
Book TitleMahapurana Part 2
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages463
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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