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________________ सन्धि ३६ विद्याधर राजा अकम्पनकी वह पुत्री शुभमतिवाली सुखावती, उत्तम रूपरंगवाली छहों कन्याओंके साथ सातवें दिन वहां पहुंची। उसने स्वयं अपनी सासको नमस्कार किया। वह भद्रा बोली-"गुणोंसे युक्त तथा हरिणके समान नेत्रोंवाली ये पुत्रियो तुम्हारी कुलपलियाँ होंगी--यह सोचकर अशनिवेग विद्याधरने इन्हें जंगलमें छिपा रखा था। मेरे द्वारा सम्मानित इनका आप सम्मान करें। इस समय मैं इन्हें तुम्हारे मन्दिरमें ले आयी है।" तब कुबेरश्रीने मालती मालाओंको धारण करनेवाली उन कन्याओंका प्रसाधन किया। इतदेवने पहलेसे ही वहां स्थित और उत्कण्ठित इन मनुष्यनियोंसे वियोग करवा दिया, ये माता-पितासे भी विमुक्त हुई। सबसे पहले श्रीपालने यश और कान्तिसे युक्त सेठकी यशोवती कन्यासे विवाह किया। उसके बाद दूसरी स्थूल और सघन स्तनोंवाली तथा सुमधुर बोलनेवाली रतिकान्ता बादिसे। उन आठों कन्याओं के साथ विरहाग्निके सन्तापको शान्त करनेवाला मिलाप करता हुमा वह सुन्दर प्रिय श्रीपाल, उसी प्रकार देखा गया, जिस प्रकार गुप्तियों और समितियोंसे मिले हुए जिन भगवान् देखे जाते हैं। घत्ता-अपनी सौत वणिक पुत्रो यशस्वतीका मुख देखकर ईयकेि कारण ऋद्ध होकर और उच्छ्वास लेकर, सुखावती दु:खका हनन करनेवाले पिताके पर तत्काल चल दी ॥॥ सुखावतीने मनुष्यनी यशस्वती आदिका चरित अपने पिताको बताया कि वे गुणों के कारण आदर करनेवाले तथा अनुरक्त हम विद्याधरोंको कुछ भी नहीं मानते । उसने ( श्रीपालने ) शत्रके प्राणोंका अपहरण करनेवाले मेरे हाथको छोड़कर उस किराती ( यशस्वती) का हाथ पहले पकड़ा । इस अति सामान्य विवाहसे में क्या कहेंगी? अच्छा है कि मैं अचल कन्याप्रत ग्रहण
SR No.090274
Book TitleMahapurana Part 2
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages463
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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